
कितने ग़म थे कि ज़माने से छुपा रक्खे थे,
इस तरह से कि हमें याद न आए खुद भी|
अहमद फ़राज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कितने ग़म थे कि ज़माने से छुपा रक्खे थे,
इस तरह से कि हमें याद न आए खुद भी|
अहमद फ़राज़
तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा,
तो मेरी आँख में आँसू नज़र न आएगा|
वसीम बरेलवी
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी,
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया|
जावेद अख़्तर
कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं |
शाम के साये बहुत तेज़ क़दम आते हैं ||
बशीर बद्र
इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के,
इक तरफ़ आँसुओं के रेले थे|
जावेद अख़्तर
कुछ और बरतना तो आता नहीं शे’रों में,
सदमात बरतता था, सदमात बरतता हूँ ।
राजेश रेड्डी
हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे,
ये ज़िन्दगी तो कोई बद-दुआ लगे है मुझे|
जां निसार अख़्तर
ग़म बिक रहे थे मेले में ख़ुशियों के नाम पर,
मायूस होक लौटे हैं हर इक दुकाँ से हम|
राजेश रेड्डी
हर एक मोड़ पर हम ग़मों को सज़ा दें,
चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें|
सुदर्शन फ़ाकिर
मेरी मुस्कानों के नीचे,
ग़म के खज़ाने गड़े हुए हैं|
राजेश रेड्डी