
बच निकलते हैं अगर आतिश-ए-सय्याद से हम,
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफ़ाम से जल जाते हैं|
क़तील शिफ़ाई
आसमान धुनिए के छप्पर सा
बच निकलते हैं अगर आतिश-ए-सय्याद से हम,
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफ़ाम से जल जाते हैं|
क़तील शिफ़ाई
एक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तो,
इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है|
दुष्यंत कुमार