
जागने पर भी नहीं आँख से गिरतीं किर्चें,
इस तरह ख़्वाबों से आँखें नहीं फोड़ा करते|
गुलज़ार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जागने पर भी नहीं आँख से गिरतीं किर्चें,
इस तरह ख़्वाबों से आँखें नहीं फोड़ा करते|
गुलज़ार
राख़ कितनी राख़ है, चारों तरफ बिख़री हुई,
राख़ में चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख ।
दुष्यंत कुमार