
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की,
उसने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की|
परवीन शाकिर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की,
उसने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की|
परवीन शाकिर
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है,
न पूरे शहर पर छाए तो कहना|
जावेद अख़्तर
रफ़्ता रफ़्ता इश्क़ मानूस-ए-जहाँ होता चला,
ख़ुद को तेरे हिज्र में तन्हा समझ बैठे थे हम|
फ़िराक़ गोरखपुरी
बिखरती है वही अक्सर ख़िज़ाँ-परवर बहारों में,
चमन में जो कली पहले से मुरझाई भी होती है|
क़तील शिफ़ाई
अक़्स-ए-ख़ुशबू हूँ, बिखरने से न रोके कोई,
और बिखर जाऊँ तो, मुझको न समेटे कोई|
परवीन शाकिर