
अपने रुत्बे का कुछ लिहाज़ ‘मुनीर’,
यार सबको बना लिया न करो|
मुनीर नियाज़ी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अपने रुत्बे का कुछ लिहाज़ ‘मुनीर’,
यार सबको बना लिया न करो|
मुनीर नियाज़ी
देर से आज मेरा सर है तेरे रानों पर,
ये वो रुत्बा है जो शाहों को मिला करता है |
क़तील शिफ़ाई