
है अब ये हाल कि दर दर भटकते फिरते हैं,
ग़मों से मैंने कहा था कि मेरे घर में रहो|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
है अब ये हाल कि दर दर भटकते फिरते हैं,
ग़मों से मैंने कहा था कि मेरे घर में रहो|
राहत इन्दौरी