
यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं ‘मोहसिन’,
वो काँच का पैकर है तो पत्थर तिरी आँखें|
मोहसिन नक़वी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं ‘मोहसिन’,
वो काँच का पैकर है तो पत्थर तिरी आँखें|
मोहसिन नक़वी
जिस चीज़ से तुझ को निस्बत है जिस चीज़ की तुझ को चाहत है,
वो सोना है वो हीरा है वो माटी हो या कंकर हो|
इब्न ए इंशा
नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर,
जो हाथ में नहीं है वो पत्थर तलाश कर|
निदा फ़ाज़ली
बहुत दिनों से मैं इन पत्थरों में पत्थर हूँ,
कोई तो आए ज़रा देर को रुलाये मुझे|
बशीर बद्र
मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था,
तुम तो दरिया थे मिरी प्यास बुझाते जाते|
राहत इन्दौरी
मुझसे मुझे निकाल के पत्थर बना दिया,
जब मैं नहीं रहा हूँ तो पूजा गया हूँ मैं|
निदा फ़ाज़ली
ऐ याद-ए-यार तुझ से करें क्या शिकायतें,
ऐ दर्द-ए-हिज्र हम भी तो पत्थर के हो गये|
अहमद फ़राज़
दिल लगाने की भूल थे पहले,
अब जो पत्थर हैं, फूल थे पहले|
सूर्यभानु गुप्त
पक गया है शज़र पे फल शायद,
फिर से पत्थर उछालता है कोई|
गुलज़ार
मेरे आंगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे,
सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है।
निदा फ़ाज़ली