हम जाने क्यूँ सर बचाते रहे!

दूर तक हाथ में कोई पत्थर न था,
फिर भी हम जाने क्यूँ सर बचाते रहे|

वसीम बरेलवी

सनद हम जो दिखाने निकले!

अपने घर संग-ए-मलामत की हुई है बारिश,
बे-गुनाही की सनद हम जो दिखाने निकले|

रज़ा अमरोहवी

जज़्बात के ज़ख़्म खा रहा हूँ!

है शहर में क़हत पत्थरों का,
जज़्बात के ज़ख़्म खा रहा हूँ|

क़तील शिफ़ाई

कोई कंकर नहीं गिरता!

हैराँ है कई रोज़ से ठहरा हुआ पानी,
तालाब में अब क्यूँ कोई कंकर नहीं गिरता|

क़तील शिफ़ाई

जिसमें कोई पत्थर नहीं गिरता!

समझो वहाँ फलदार शजर कोई नहीं है,
वो सहन कि जिसमें कोई पत्थर नहीं गिरता|

क़तील शिफ़ाई

राहों के पत्थर बोलते हैं!

तेरे हमराह मंज़िल तक चलेंगे,
मेरी राहों के पत्थर बोलते हैं|

राजेश रेड्डी

हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे!

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे,
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे|

बशीर बद्र

पत्थरों तक अगर गया कोई!

मूरतें कुछ निकाल ही लाया,
पत्थरों तक अगर गया कोई|

सूर्यभानु गुप्त

हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है!

आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है,
ज़ख़्म हर सर पे, हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है|

सुदर्शन फाक़िर

मचलती नाव पर पत्थर न फेंक!

फेंकने ही हैं अगर पत्थर तो पानी पर उछाल,
तैरती मछली, मचलती नाव पर पत्थर न फेंक|

कुंवर बेचैन