
घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे,
हर तरफ़ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे,
हर तरफ़ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे|
निदा फ़ाज़ली
तूफ़ान का शेवा तो है कश्ती को डुबोना,
ख़ामोश किनारों ने भी दिल तोड़ दिया है|
महेश चंद्र नक़्श
उल्टे सीधे गिरे पड़े हैं पेड़,
रात तूफ़ान से लड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
जहाँ दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है,
कोई उठता है और तूफ़ान का रुख़ मोड़ देता है|
वसीम बरेलवी
आई थी जिस हिसाब से आँधी,
उसको सोचो तो पेड़ कम टूटे|
सूर्यभानु गुप्त
घास के घरौंदे से ज़ोर-आज़माई क्या,
आँधियाँ भी पगली है बर्क भी दिवानी है|
कैफ़ भोपाली
कभी ग़म की आँधी, जिन्हें छू न पाए,
वफ़ाओं के हम, वो नशेमन बना दें|
सुदर्शन फ़ाकिर