
ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में,
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो|
साहिर लुधियानवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में,
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो|
साहिर लुधियानवी
तअज्जुब में तो पड़ता ही रहा है आइना अक्सर,
मगर इस बार उसकी आँखों में हैरत ज़ियादा थी|
राजेश रेड्डी
तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता,
ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं|
अहमद फ़राज़