
अपना चेहरा निहार लें ऋतुएँ,
आईनों की तरह जड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अपना चेहरा निहार लें ऋतुएँ,
आईनों की तरह जड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
मौत तक दोस्ती निभाते हैं,
आदमी से बहुत बड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
अपनी दुनिया के लोग लगते हैं,
कुछ हैं छोटे तो कुछ बड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
जीत कर कौन इस ज़मीं को गया,
परचमों की तरह गड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
कोंपलें फूल पत्तियाँ देखो,
कौन कहता है ये कड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
जिस जगह हैं न टस से मस होंगे,
कौन सी बात पर अड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
क्या ख़बर इंतिज़ार है किसका,
साल हा साल से खड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
बाग़बाँ हो गये लकड़हारे,
हाल पूछा तो रो पड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
कौन आया था किससे बात हुई,
आँसुओं की तरह झडे हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
उल्टे सीधे गिरे पड़े हैं पेड़,
रात तूफ़ान से लड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त