
अश्कों में भीगकर जो, मिठाता है और भी,
बूढ़ों का ये विचार है, जामुन का पेड़ है।
सूर्यभानु गुप्त
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अश्कों में भीगकर जो, मिठाता है और भी,
बूढ़ों का ये विचार है, जामुन का पेड़ है।
सूर्यभानु गुप्त
हम तुम्हारे हैं ‘कुँअर’ उसने कहा था इक दिन,
मन में घुलती रही मिसरी की डली मीलों तक|
कुंवर बेचैन