
जवानी की दोशीज़गी का तबस्सुम,
गुल-ए-ज़ार के वो खिलाने की रातें|
फ़िराक़ गोरखपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जवानी की दोशीज़गी का तबस्सुम,
गुल-ए-ज़ार के वो खिलाने की रातें|
फ़िराक़ गोरखपुरी