
ज़ुबां ख़ामोश है डर बोलते हैं,
अब इस बस्ती में ख़ंजर बोलते हैं|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ज़ुबां ख़ामोश है डर बोलते हैं,
अब इस बस्ती में ख़ंजर बोलते हैं|
राजेश रेड्डी
बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी है,
गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो न|
राहत इन्दौरी
ग़ज़ब ये है की अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
वो सब के सब परेशां हैं वहां पर क्या हुआ होगा।
दुष्यंत कुमार