
अब तो अपना भी उस गली में ‘फ़राज़’,
आना जाना नहीं कि तुझसे कहें|
अहमद फ़राज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अब तो अपना भी उस गली में ‘फ़राज़’,
आना जाना नहीं कि तुझसे कहें|
अहमद फ़राज़
गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे,
गुज़रूँ जो उस गली से तो ठंडी हवा लगे|
क़तील शिफ़ाई