
वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंद,
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे|
अहमद फ़राज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंद,
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे|
अहमद फ़राज़
मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली,
इसी तरह से बसर हम ने ज़िंदगी कर ली|
कैफ़ी आज़मी
मेरी आबला-पाई* उनमें याद अक्सर की जाती है,
काँटों ने इक मुद्दत से देखी थी कोई बरसात कहाँ|
*पैर के छाले
राही मासूम रज़ा
होता चला आया है बेदर्द ज़माने में,
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं|
हसरत जयपुरी
अगर ये पाँव में होते तो चल भी सकता था,
ये शूल दिल में चुभे हैं इन्हें निकाल के चल।
कुँअर बेचैन
मैं जो कांटा हूँ तो चल मुझसे बचाकर दामन,
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझको|
क़तील शिफ़ाई
बानी-ए-जश्न-ए-बहारां ने ये सोचा भी नहीं,
किसने कांटों को लहू अपना पिलाया होगा|
कैफ़ी आज़मी
चाहा था एक फूल ने तड़पे उसी के पास,
हमने खुशी के पाँवों में कांटे चुभा लिए|
कुंवर बेचैन