
रात सपना बहार का देखा दिन हुआ तो ग़ुबार सा देखा,
बेवफ़ा वक़्त बेज़ुबाँ निकला बेज़ुबानी को नाम क्या दें हम|
सुदर्शन फ़ाकिर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
रात सपना बहार का देखा दिन हुआ तो ग़ुबार सा देखा,
बेवफ़ा वक़्त बेज़ुबाँ निकला बेज़ुबानी को नाम क्या दें हम|
सुदर्शन फ़ाकिर
हाए उस वक़्त को कोसूँ कि दुआ दूँ यारो,
जिसने हर दर्द मिरा छीन लिया है मुझसे|
जाँ निसार अख़्तर
वो ज़माना गुज़र गया कब का,
था जो दीवाना मर गया कब का|
जावेद अख़्तर
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा,
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा|
अहमद फ़राज़
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते.
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते|
गुलज़ार
रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए,
इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है|
अहमद मुश्ताक़
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक|
मिर्ज़ा ग़ालिब
मुक़ाबिल अपने कोई है ज़ुरूर कौन है वो,
बिसाते-दहर है, बाज़ी बिछी है और मैं हूं|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
कुछ और वक़्त चाहते थे कि सोचें तेरे लिये,
तूने वो वक़्त हमको ज़माने, नहीं दिया|
मुनीर नियाज़ी
वक़्त रहता नहीं कहीं थमकर,
इसकी आदत भी आदमी सी है|
गुलज़ार