
मेरी आबला-पाई* उनमें याद अक्सर की जाती है,
काँटों ने इक मुद्दत से देखी थी कोई बरसात कहाँ|
*पैर के छाले
राही मासूम रज़ा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मेरी आबला-पाई* उनमें याद अक्सर की जाती है,
काँटों ने इक मुद्दत से देखी थी कोई बरसात कहाँ|
*पैर के छाले
राही मासूम रज़ा
हम थके-हारे हैं ऐ अज़्म-ए-सफ़र हमको सँभाल,
कहीं साया जो नज़र आया है घबराए हैं|
राही मासूम रज़ा
मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ,
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ|
बशीर बद्र
ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम भी थाके-हारे हो,
धूप की तुम तो मिलावट न करो छाँव में|
क़तील शिफ़ाई