
शहर को बरबाद करके रख दिया उसने ‘मुनीर’,
शहर पर ये ज़ुल्म मेरे नाम पर उसने किया|
मुनीर नियाज़ी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
शहर को बरबाद करके रख दिया उसने ‘मुनीर’,
शहर पर ये ज़ुल्म मेरे नाम पर उसने किया|
मुनीर नियाज़ी
या रब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से,
मैं उसकी इनायत का तलबगार नहीं हूँ|
अकबर इलाहाबादी
बड़े ताजिरों की सताई हुई,
ये दुनिया दुल्हन है जलाई हुई|
बशीर बद्र
हम को दीवाना जान के क्या क्या जुल्म न ढाया लोगों ने,
दीन छुड़ाया, धर्म छुड़ाया, देस छुड़ाया लोगो ने|
कैफ़ भोपाली
कटेगा देखिए दिन जाने किस अज़ाब* के साथ,
कि आज धूप नहीं निकली आफ़ताब के साथ|
*कष्ट, उत्पीड़न
शहरयार
जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बर हैं,
कि मेरी ज़ंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है|
जावेद अख़्तर
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं,
मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा|
वसीम बरेलवी
कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ,
जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझको|
क़तील शिफ़ाई
इक बिरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है।
है यक़ीं अब न कोई शोर-शराबा होगा
ज़ुल्म होगा न कहीं ख़ून-ख़राबा होगा|
साबिर दत्त
इश्क़ में हम तुम्हें क्या बताएं, किस क़दर चोट खाए हुए हैं,
मौत ने हमको बख्शा है लेकिन, ज़िंदगी के सताए हुए हैं|