
जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में,
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो|
जाँ निसार अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में,
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो|
जाँ निसार अख़्तर
उस हुस्न के सच्चे मोती को हम देख सकें पर छू न सकें।
जिसे देख सकें पर छू न सकें वो दौलत क्या वो ख़ज़ाना क्या॥
इब्ने इंशा
मोम के पास कभी आग को लाकर देखूं
सोचता हूँ के तुझे हाथ लगा कर देखूं |
राहत इन्दौरी