
सबकी सुनता जा रहा हूँ और कुछ कहता नहीं,
वो ज़बाँ हूँ अब जिसे दाँतों में रहना आ गया|
आनंद नारायण मुल्ला
आसमान धुनिए के छप्पर सा
सबकी सुनता जा रहा हूँ और कुछ कहता नहीं,
वो ज़बाँ हूँ अब जिसे दाँतों में रहना आ गया|
आनंद नारायण मुल्ला