
तस्वीर-ए-ज़िंदगी में नया रंग भर गए,
वो हादसे जो दिल पे हमारे गुज़र गए|
महेश चंद्र नक़्श
आसमान धुनिए के छप्पर सा
तस्वीर-ए-ज़िंदगी में नया रंग भर गए,
वो हादसे जो दिल पे हमारे गुज़र गए|
महेश चंद्र नक़्श
एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें “फ़ाकिर”,
हमको हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया|
सुदर्शन फ़ाकिर
रस्ता न भूलिएगा, दुखों के मकान का,
जिस ओर को दुआर है, जामुन का पेड़ है।
सूर्यभानु गुप्त