
किसी को गाँव से परदेस ले जाएगी फिर शायद,
उड़ाती रेल-गाड़ी ढेर सारा फिर धुआँ आई|
मुनव्वर राना
आसमान धुनिए के छप्पर सा
किसी को गाँव से परदेस ले जाएगी फिर शायद,
उड़ाती रेल-गाड़ी ढेर सारा फिर धुआँ आई|
मुनव्वर राना
‘अंजुम’ तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़,
इक रेल जा रही थी कि तुम याद आ गए|
अंजुम रहबर