अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव के अवसर पर पणजी, गोवा में सजावट

 

पणजी, गोवा में चल रहे 50 वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव, आईएफएफआई-2019 का आज 28 नवंबर को अंतिम दिन है। ‘IFFI@50’ में फिल्म के शौकीन लोगों को अनेक श्रेष्ठ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्में देखने को मिलीं।

 

 

इस अवसर पर पणजी, गोवा में आने वाले मेहमानों को लुभाने और इस अवसर को सेलीब्रेट करने के लिए बहुत सुंदर सजावट की जाती है, जिसमें इस उत्सव के प्रतीक ‘गोल्डन पीकॉक’ को अनेक स्थानों पर लगाया जाना, अनेक स्थानों पर ‘ओपन एयर फिल्म शो’ आयोजित किया जाना, सड़क के किनारे कलाकारों की प्रस्तुतियां, कलाकृतियों के स्टॉल आदि लगाया जाना भी शामिल होता है।

इस अवसर पर कला अकादमी और ‘आइनॉक्स थियेटर’ को भी आकर्षक ढंग से सजाया गया था।

 

वैसे तो बहुत कुछ है जो शेयर किया जा सकता है, बस दो चित्र और,

 

आज बस इस अवसर पर की गई सजावट की कुछ झलकियां प्रस्तुत कर रहा हूँ।

नमस्कार।

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पणजी में फिल्म मेले- आईएफएफआई-2019 का दूसरा दिन

एक बार फिर से गोवा फिल्म फेस्टिवल, IFFI-2019 के बारे में लिख रहा हूँ, क्योंकि यह मेरा स्थान है और अपने निवास क्षेत्र के बारे में ऐसी गौरव भरी बात लिखना अच्छा लगता है।

 

जैसा मैंने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा था, आजकल पणजी, गोवा में अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव, आईएफएफआई-2019 चल रहा है। इस उत्सव के उद्घाटन समारोह के बारे में मैंने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा था, अब इसी उत्सव से संबंधित कुछ और जानकारी दे रहा हूँ।

एशिया के इस सबसे बड़े फिल्म समारोह के 50वें आयोजन में, जैसी कि घोषणा की गई थी, देश के सर्वमान्य सुपर स्टार, दादासाहब फाल्के सम्मान तथा अन्य अनेकानेक पुरस्कारों से अलंकृत, हिंदी फिल्म जगत के गौरव- श्री अमिताभ बच्चन की फिल्मी यात्रा की उनकी फिल्मों के माध्यम से प्रस्तुति अर्थात- रैट्रोस्पेक्टिव आयोजित किया जा रहा है। इसका आयोजन पणजी की कला-अकादमी में किया जा रहा है, इसमें अमिताभ जी की अनेक प्रतिनिधि फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी।

 

 

श्री अमिताभ बच्चन ने कल कला अकादमी, पणजी, गोवा में  रैट्रोस्पेक्टिव का उद्घाटन किया। इस अवसर बोलते हुए श्री बच्चन ने कहा – मैं अत्यंत अभिभूत हूँ और भारत सरकार को इसके हृदय से लिए धन्यवाद देता हूँ। मैं ऐसा महसूस करता हूँ कि मैं इस सम्मान के योग्य नहीं हूँ, लेकिन मैं विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकार करता हूँ।

इस फिल्म उत्सव के 50 वें आयोजन के अवसर पर उन्होंने कहा, “मैं भारत सरकार को यह आयोजन इतनी भव्यता के साथ करने के लिए बधाई देता हूँ। प्रतिवर्ष हम पाते हैं कि इसमें भाग लेने वाले प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ती जाती है और एक साथ हमें अनेक प्रकार की फिल्में मिलती हैं, जिससे हम विश्व भर की सृजनात्मक फिल्मों में से अपने देखने के लिए कुछ फिल्में चुन सकते हैं।”

श्री बच्चन ने कहा कि फिल्मों की दुनिया विश्व व्यापी है और यह भाषा और क्षेत्र के बंधन तोड़ देती हैं। उन्होंने कहा कि जब हम सिनेमा हॉल में बैठते हैं तब हम अपनी बगल में बैठे किसी व्यक्ति की जाति, धर्म, रंग नहीं पूछते हैं। हम सब उसी फिल्म का एक साथ आनंद लेते हैं, उस फिल्म के दृश्यों को देखकर एक साथ हंसते हैं और एक साथ रोते हैं, एक जैसी भावनाएं व्यक्त करते हैं। यह एक अत्यंत सशक्त माध्यम है और उन्होंने आशा व्यक्त की यह माध्यम पूरी निष्ठा से अपना काम करता रहेगा।

उन्होंने एक शांतिपूर्ण और प्रेम से भरी दुनिया बनाए रखने के लिए फिल्मों की भूमिका का उल्लेख किया और आशा व्यक्त की कि वे अपनी इस भूमिका को निरंतर निभाती रहेंगी।

श्री बच्चन का गोवा से खासा जुड़ाव रहा है और उन्होंने बताया कि किस प्रकार उनकी पहली फिल्म की शूटिंग भी गोवा में हुई थी। उन्होंने कहा कि गोवा आने पर उनको हमेशा ऐसा लगता है जैसे वे अपने घर आये हों। ‘यहाँ मुझे अनेक अवसर मिले हैं और लोगों का बहुत प्यार मिला है’, उन्होंने कहा।

श्री बच्चन की फिल्मों के रैट्रोस्पेक्टिव के अंतर्गत जो फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी उनमें- ‘पा’, शोले, दीवार, ब्लैक, पीकू और बदला शामिल हैं।

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इसके बाद मैं यहाँ समारोह में प्रदर्शित की जा रही एक फिल्म ‘दा हंड्रेड बक्स’ की संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूँ।

 

 

यह मोहिनी की कहानी है, मोहिनी और उसके ऑटो चालक अब्दुल की यह एक रात की कहानी पैसे के लिए ग्राहक खोजने में पूरी रात के उनके संघर्ष को प्रदर्शित करती है । आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में फिल्म के निर्देशक- दुष्यंत सिंह, जो एक संगीतकार और गायक भी हैं, ने बताया कि यह फिल्म एक बहुत ही संवेदनशील विषय ‘वेश्यावृत्ति’ पर आधारित है, जिसे अक्सर दुनिया के सबसे पुराने पेशे के रूप में वर्णित किया जाता है, लेकिन समाज ने हमेशा वेश्याओं का अपमान किया है। फिल्म जनवरी 2020 में रिलीज़ होगी और पूरे भारत में प्रदर्शित की जाएगी। फिल्म में पहली बार किसी अभिनेत्री ने इस विषय में एक शक्तिशाली प्रस्तुति दी है।

 

फिल्म की अभिनेत्री कविता जो एक मॉडल है ने बताया कि यह एक अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फिल्म है और करियर की शुरुआत में उन्हे मुख्य किरदार के रूप में एक फिल्म मिली और यह फिल्म महिला प्रधान है । आमतौर पर यह एक पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की स्थितियों को चित्रित करती है। क्योंकि यह फिल्म उद्योग में उसकी शुरुआत है और इस तरह की भूमिका!  एक लड़की होना मेरे लिए भी सौभाग्य की बात है। कविता के अनुसार, निर्देशक दुष्यंत एक अद्भुत निर्देशक हैं और उनके साथ मेरे लिए एक अभिनेत्री के रूप में काम करना बहुत अच्छा है क्योंकि वह एक परिवार की तरह सभी के साथ व्यवहार करते हैं। यह एक कलाकार के रूप में उनके साथ काम करने के लिए बहुत आभारी हैं। फिल्म के निर्माता रजनीश राम पुरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि मुझे फिल्म का विषय पसंद आया! इतना कि एक निर्माता के रूप में मैंने तुरंत हां कह दिया क्योंकि ऐसी चीजें और विषय मिलना मुश्किल है जो महिलाओं के दर्द और संघर्ष को इतनी खूबसूरती से बयान कर सकते हैं। मेरे अनुसार फिल्म से जुड़े सभी अभिनेताओं और तकनीशियनों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। दुष्यंत सिंह के साथ अपनी पुरानी दोस्ती के कारण  एक निर्देशक के रूप में उनसे अच्छा तालमेल रहा और फिल्म में एक अभिनेत्री के रूप में कविता के अभिनय से भी बहुत प्रभावित हुए हैं क्योंकि उनकी कड़ी मेहनत के कारण यह अनुमान लगाना कठिन है कि यह उनकी  पहली फिल्म है,  उन्होंने अपना किरदार इतनी अच्छी तरह से निभाया। निर्देशक दुष्यंत सिंह ने फिल्म के अन्य पात्रों के बारे में बताया जो दिनेश बावरा (अभिनेता और हास्य कवि), ज़ैद शेख – अभिनेता हैं। निशा गुप्ता अभिनेत्री ने फिल्म में शानदार काम किया है। चूंकि पूरी फिल्म रात में ही शूट की गई थी, इसलिए फिल्म का पूरा लुक बहुत यथार्थवादी लग रहा है, फिल्म में संगीत संतोष सिंह का है। फिल्म की पटकथा सलीम द्वारा लिखी गई है। फिल्म के अन्य निर्मा सहायक संदीप पुरी, विभव तोमर, प्रतिमा तोतला और रितु सिंह हैं।

 

 

इस आलेख के साथ दिए गए सभी छायाचित्र तथा विवरण बॉलीवुड के फोटोग्राफर श्री कबीर अली (कबीर एम. लव) के सौजन्य से।

आज के लिए इतना ही,

नमस्कार।

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गोवा का वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म मेला- IFFI 2019

गोवा भारत का एक प्रमुख पर्यटन केंद्र है, जहाँ देश-विदेश से सैलानी आकर्षक समुद्र-तटों को देखने और प्रदूषण मुक्त वातावरण में फुर्सत के कुछ पल बिताने के लिए आते हैं। विशेष रूप से जब देश के अनेक भागों में सर्दी पड़ रही होती है तब भी यहाँ पर मौसम सुहाना होता है। इस प्रकार के पर्यटन स्थलों पर सैलानियों को कुछ और गतिविधियां भी आकर्षित करती हैं। गोवा के मामले में ऐसी ही एक गतिविधि है अंतर्राष्ट्रीय फिल्म मेला अर्थात IFFI, जिसका कल 20 नवंबर को उद्घाटन हुआ।

 

 

आईएफएफआई-2019 का उद्घाटन कल पणजी, गोवा में बड़ी धूमधाम के साथ हुआ। इस फिल्म मेले के स्वर्ण जयंती समारोह का उद्घाटन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री- श्री प्रकाश जावड़ेकर ने सिनेमा जगत की दो महान हस्तियों- श्री अमिताभ बच्चन और श्री रजनीकांत की गौरवशाली उपस्थिति में किया, जिनको फिल्म जगत में एक लंबी पारी पूरी करने के अवसर पर सम्मानित भी किया गया। अमिताभ बच्चन जी ने अपने फिल्मी करियर के 50 वर्ष पूरे कर लिए हैं और श्री रजनीकांत भी लगभग इतने ही समय से लोगों को अपने अभिनय से चमत्कृत कर रहे हैं।

 

नौ दिन तक चलने वाले इस समारोह में 76 देशों की 200 से अधिक फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी तथा सिनेमा प्रेमियों के लिए अपनी रुचि के अनुसार श्रेष्ठतम फिल्में देखने का यह सुनहरा अवसर है। इस बार के फिल्म मेले में रूसी फिल्मों को विशेष रूप से प्रदर्शित किया जा रहा है।

 

 

इस फिल्म मेले के भव्य उद्घाटन समारोह का संचालन, श्री अमिताभ बच्चन और श्री रजनीकांत जैसी दिव्य हस्तियों की उपस्थिति में प्रमुख फिल्मी व्यक्तित्व श्री करन जौहर ने किया, और इन विशिष्ट अतिथियों द्वारा केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री- श्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ मिलकर, इस समारोह के प्रारंभ की घोषणा की गई।

 

 

इस समारोह में श्री रजनीकांत को भारतीय सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान के लिए एक विशेष पुरस्कार ‘आइकन ऑफ गोल्डन जुबिली एवार्ड’ से सम्मानित किया गया, जो इस 50 वें फिल्म उत्सव से ही प्रारंभ किया गया है। अपने योगदान से फ्रेंच सिनेमा की पहचान बन चुकी अभिनेत्री- सुश्री इसाबेले अन्ने मेडेलीने हुपर्ट को इस अवसर पर ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट एवार्ड’ प्रदान किया गया।

 

 

इस अवसर पर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री- श्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा ऐसा वातावरण तैयार किया जा रहा है कि अधिक से अधिक विदेशी निर्माता, बिना किसी असुविधा के भारत में अपनी फिल्मों की शूटिंग कर पाएं और इस प्रकार हमारे देश का प्रकृतिक सौंदर्य पूरी दुनिया तक पहुंचे। अब उन निर्माताओं को एक बिंदु से ही शूटिंग की अनुमति मिल पाएगी और अनेक स्थानों पर नहीं भटकना पड़ेगा। इस प्रकार उन निर्माताओं को भी आसानी होगी और गोवा, लेह-लद्दाख, अंडमान निकोबार जैसे स्थानों को भी इसका लाभ मिलेगा।

 

 

मंत्री जी ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी, संगीत तथा फिल्में हमारी मृदुल शक्ति हैं और हमें इनको आगे बढ़ाना चाहिए। हर फिल्मी चरित्र हमारे मस्तिष्क पर लंबे समय तक बनी रहने वाली छाप छोड़ता है और उसमें हमारे विचार तथा हमारा मूड बदलने की शक्ति होती है। उन्होंने कहा कि भारतीय फिल्मों के दर्शक लगातार बढ़ रहे हैं और आज दुनिया भर में भारतीय फिल्में देखी जाती हैं। मंत्री जी ने कहा कि इस समारोह में दुनिया भर की अनेक अच्छी फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी और यह गोवा के पूर मुख्यमंत्री स्व. मनोहर पर्रिकर जी के प्रति हमारी विनम्र श्रद्धांजलि होगी।

 

 

श्री रजनीकांत जी ने ‘आइकन ऑफ गोल्डन जुबिली एवार्ड’ स्वीकार करते हुए, श्री अमिताभ बच्चन जी के कर कमलों से यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त होने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने यह पुरस्कार उन सभी निर्माताओं, निर्देशकों और तकनीशियनों को समर्पित किया, जिनके साथ उन्होंने फिल्मों मे काम किया है तथा अपने प्रशंसकों के प्रति आभार व्यक्त किया ।

श्री अमिताभ बच्चन ने अपना सम्मान किए जाने पर हार्दिक आभार व्यक्त किया और कहा कि वे आईएफएफआई के बहुत आभारी हैं  कि उनका सम्मान किया गया और उनकी फिल्मों का विशेष प्रदर्शन किया जा रहा है। श्री अमिताभ बच्चन ने यह भी कहा कि आज फिल्में हमारे जीवन का अटूट हिस्सा बन गई हैं। गोवा में इतना विशाल फिल्म उत्सव आयोजित होने से गोवा दुनिया भर में हो रही गतिविधियों की झलक मिलती है और उनको बाहर के लोगों से मिलने-जुलने का अवसर मिलता है।

 

 

सूचना एवं प्रसारण सचिव श्री अमित खरे ने इस समारोह की प्रमुख विशेषताओं की जानकारी दी और यह बताया कि 1952 में जहाँ इसमें 23 देशों ने भाग लिया था, इस वर्ष यह संख्या बढ़कर 76 हो गई है।

गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन में हर प्रकार की फिल्में शामिल हैं और यह समारोह भारतीय और विदेशी निर्माताओं, कलाकारों को एक-दूसरे के निकट लाता है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि फिल्में समाज के दर्पण के रूप में काम करती हैं।

इस समारोह शामिल हुए कुछ प्रमुख व्यक्ति हैं- विश्व विख्यात सिनेमेटोग्राफर और आईएफएफआई इंटरनेशनल जूरी चेयरमैन- जॉन बेली, भारतीय फिल्म निर्माता और भारतीय जूरी के अध्यक्ष- श्री प्रियदर्शन और अन्य जूरी सदस्य, रूसी प्रतिनिधिमंडल की प्रामुख- मारिया लेमेशेवा और अन्य अनेक गणमान्य अतिथि इस समारोह में शामिल हुए।

इस आयोजन में इन फिल्म समारोहों को गोवा की पहचान बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मनोहर पर्रिकर को, उनके योगदान को रेखांकित करने वाली एक लघुफिल्म के माध्यम से भावभीनी श्रंद्धांजलि दी गई। इस आयोजन में जिन प्रमुख भारतीय फिल्मी हस्तियों को सम्मानित किया गया उनमें श्री रमेश सिप्पी, श्री एन. चंद्रा, श्री पी.सी.श्रीराम शामिल थे।

समारोह में शामिल कुछ प्रमुख व्यक्तियों में केंद्रीय आयुष मंत्री- श्री श्रीपद नायक, केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री- श्री बाबुल सुप्रियो, केंद्रीय फिल्म सर्टिफिकेशन बोर्ड के अध्यक्ष- श्री प्रसून जोशी आदि शामिल थे।

इस अवसर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्री- श्री प्रकाश जावडेकर ने 50 वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के अवसर पर एक डाक टिकट भी जारी की। उद्घाटन में अनेक भव्य प्रस्तुतियां की गईं, जिनमें विख्यात संगीतकार एवं गायक श्री शंकर महादेवन और उनके बैंड की प्रस्तुति ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

फिल्म-समारोह का प्रारंभ इटली की फिल्म ‘डिस्पाइट द फॉग’ (कोहरे के बावज़ूद) से हुआ। इस फिल्म से जुड़े कलाकार और अन्य कर्मी भी फिल्म प्रदर्शन के अवसर पर उपस्थित थे। आईएफएफआई के इस स्वर्ण जयंती उत्सव में लगभग 7000 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।

इस आयोजन में 76 देशों की 200 से अधिक प्रतिष्ठित फिल्मों का प्रदर्शन होगा, रूस की फिल्मों पर इस समारोह में विशेष रूप से फोकस किया गया है और भारतीय पैनोरमा खंड में 15 नॉन-फीचर फिल्में भी प्रदर्शित की जाएंगी। ऐसी आशा की जाती है कि इस विशिष्ट समारोह में 10, 000 से अधिक सिनेमा प्रेमी भाग लेंगे और यह समारोह पणजी, गोवा में 28, नवंबर, 2019 को संपन्न होगा।
(उद्घाटन समारोह से संबंधित सभी छायाचित्र- बॉलीवुड फोटोग्राफर श्री कबीर अली (कबीर एम. लव के सौजन्य से)

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बंगलौर में एक दिन!

हैदराबाद से रात्रि में चलने वाली स्लीपर बस द्वारा बंगलौर आया, बहुत दिनों के बाद नाइट बस में यात्रा और देर रात में मिड-वे ढ़ाबे में खाना खाने का अनुभव दोहराया। एक दिन आराम करने के बाद सोचा कि बंगलौर में ही किसी स्थान पर धावा बोला जाए।
बंगलौर में स्थानीय भ्रमण के अंतर्गत मैं पहले लाल-बाग बोटेनिकल गार्डन गया, बहुत पहले यहाँ गया था, सोचा कि इस बार एक ब्लॉगर की निगाह से इस स्थान को देखा जाए।

शायद यह भारतवर्ष का पहला सुनियोजित बोटेनिकल गार्डन है, जिसकी संकल्पना और स्थापना बहुत पहले ‘हैदर अली’ के शासन काल में हुई, बाद में ‘टीपू सुल्तान’ के शासन काल में इसको और समृद्ध किया गया और बाद में ब्रिटिश शासन काल में और स्वतंत्र भारत में यह और विकसित होता गया है।

अनेक प्रजातियों के वृक्षों और फूलों की पौध और अनेक विकसित वृक्ष यहाँ पर हैं, एक योजनाबद्ध रूप से अनेक सेक्शन यहाँ बनाए गए हैं, पूरा बाग देखने के लिए काफी लंबा समय लग सकता है और यह भी डर लगा रहता है कि शायद कुछ हिस्सा छूट जाए, इसलिए बेहतर है कि आप एक बार वहाँ घुमाने वाली गाड़ी में घूम लें और जिस हिस्से में आप अधिक समय बिताना चाहें, वहाँ पैदल घूम सकते हैं, गौर से कुच चीजों को देख सकते हैं। वैसे जिन जोडों को एकांत में समय बिताने की जरूरत हो, वे तो पूरा दिन यहाँ रह सकते हैं।

 

मुझे तो पेड़ पौधों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है, मुझे लग रहा था कि मेरे मित्र वसीउल्लाह खान यहाँ जाएं तो बहुत से पुराने पेड़ों को बहुत गौर से देखेंगे और शायद उनसे बात भी करते।
वैसे यहाँ ‘फ्लोरल क्लॉक’, विशाल झील तथा और भी अनेक स्थान ऐसे हैं जो बहुत आकर्षक हैं और निश्चित रूप से यह स्थान एक बार अवश्य जाने लायक है।

 

 

लाल बाग के बाद मैंने ‘बंगलौर पैलेस’ की तरफ बढ़ा। बंगलौर पैलेस में एक विशेष आयोजन देखने का अवसर मिला, वहाँ ‘टैक समिट’ नाम से टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम करने वाली अनेक कंपनियों के आकर्षक स्टॉल लगे थे, जिनमें तकनीकी क्षेत्र में उनके द्वारा उठाए जा रहे नए कदमों की जानकारी दी जा रही थी और वहाँ एक तकनीकी क्विज, भी चल रही थी। वहाँ अचानक यह प्रदर्शनी देखना भी एक अच्छा संयोग था।

 

 

इसके बाद मैं बंगलौर पैलेस में गया, जो राजसी शान-ओ-शौकत का, पुराने जमाने में झांकने का एक अच्छा अवसर था। इस महल में प्राचीन आर्टिटैक्चर, आंतरिक सजावट, प्राचीन पेंटिंग्स आदि का अमूल्य खजाना मौजूद है तथा उनको देखना एक अलग ही अनुभव से गुजरना है। यहाँ 250/- प्रवेश टिकट है और मोबाइल द्वारा फोटो खींचने के लिए 300/- अलग से जमा कराने पड़ते हैं। लेकिन इस प्रकार आप एक अच्छे अनुभव से गुज़र पाते हैं और चित्रों का बहुत सुंदर कलेक्शन आपके पास हो जाता है।

 

आज की इस यात्रा में मुझे लगता है कि अधिक लिखने की जगह अधिक चित्र शेयर करना बेहतर है, लेकिन उसकी भी तो यहाँ सीमा है, कुछ चित्र यहाँ शेयर कर रहा हूँ।

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।

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और अब हैदराबाद-सिकंदराबाद!

मुंबई में संक्षिप्त प्रवास के बाद मैं पहुंच गया हैदराबाद में और रात्रि विश्राम के बाद सोचा कि कुछ स्थान देखे जाएं। कुछ जगह तो यहाँ ऐसी हैं जहाँ अवश्य जाना चाहिए, जैसे- रामोजी फिल्म सिटी, लेकिन उसके लिए पूरा दिन चाहिए। अगर टिकट कुछ कम हो और जगह भी पास हो तो इंसान 2-3 बार भी थोड़ा-थोड़ा देखकर आ सकता है, लेकिन 1300 रुपया करीब टिकट में खर्चें तब तो पूरा देखना बनता है न! मैं तो यहाँ 2-3 बार आने पर भी इतना समय नहीं निकाल पाया, लेकिन आप अवश्य जाएं, एक अलग ही अनुभव होगा निश्चित रूप से।

 

 

खैर अब उन स्थानों की बात कर लें जो  मैं देख पाया हूँ, इनमें से कुछ तो दूसरी, कुछ तीसरी बार  भी देखे हैं। जैसे ‘हुसैन सागर लेक’, सिकंदराबाद-हैदराबाद के बीच यात्रा करनी हो तो आप यहाँ से होकर तो  गुज़रेंगे ही, एक और विशेष बात यहाँ की ये कि विवेकानंद जी की एक ही पत्थर से बनी  दिव्य प्रतिमा जब यहाँ लगाई जा रही थी तब वह पानी में गिर गई थी, ऐसा बताया जाता है कि विदेश से मशीन मंगाकर उसे फिर से उठाया गया और आज यह प्रतिमा सरोवर के बीच शान से खड़ी है।

 

 

बिरला मंदिर भी यहाँ का प्रमुख स्थल है, कई मंज़िलों वाला यह बहुत सुंदर मंदिर है, ऊपर से नगर का दृश्य बहुत सुंदर दिखाई देता है, लेकिन यहाँ कैमरा ले जाने की अनुमति नहीं है, हमारे भगवान इतने ‘कैमरा शाई’ है क्या? खैर बिरला मंदिर देखने भी आप अवश्य जा सकते हैं।

 

 

हैदराबाद में आप आएं और सालार-जंग-म्यूज़ियम न देखें तो निश्चित रूप से आपकी  यात्रा अधूरी होगी। यहाँ विभिन्न कला-शैलियों की अनेक स्थानों और ऐतिहासिक काल खंडों की कलाकृतियां, मूर्तियां, पेंटिंग्स आदि संग्रहीत हैं जिनमें अनेक भारतीय और विदेशी कलाकारों ने अपना सर्वश्रेष्ठ सृजन प्रस्तुत किया है। हाँ यहाँ के राजघराने से जुड़ी अनेक वस्तुएं तो हैं ही, जिनमें उनके परिधान, फर्नीचर, हथियार आदि-आदि अनेक दर्शनीय वस्तुएं शामिल  हैं।

 

 

इसके अलावा चारमीनार तो अपने आप में हैदराबाद की पहचान है, पहले भी जब आया हूँ इसको देखा है, इस बार ट्रैफिक से बचने के लिए दूर से ही चारमीनार को देखा।

 

 

इसके बाद हमने निज़ाम के चौमहला प्लेस को देखा जो राजसी शान-औ-शौकत को बखूबी दर्शाता है, यहाँ भी सुंदर फर्नीचर, क्रॉकरी, झाड़-फानूस आदि से लेकर हथियार- बंदूकें, तलवारें इतनी हैं कि वे दीवारों की सज्जा के काम आ रही हैं। वास्तव में जो राजघराने और उससे जुड़ी एवं ऐतिहासिक वस्तुओं के बारे में जानने के इच्छुक हों उनके लिए विशेष रूप से और सभी लोगों के लिए ये दर्शनीय स्थान हैं।

 

 

इनके अलावा- गोल्कुंडा फोर्ट भी यहाँ की प्रमुख ऐतिहासिक धरोहर है, आधुनिक स्थानों में- वंड्रर्ला, स्नो-वर्ल्ड और जल-विहार, लुंबिनी पार्क  आदि आमोद-प्रमोद और मनोरंजन के लिए अच्छे स्थान हैं। ताज फलकनुमा पैलेस भी एक राजसी महल और दर्शनीय स्थान है।

 

 

इसके अलावा यहाँ आर्ट-गैलरी, एम्यूसमेंट पार्कपार्क, चिड़ियाघर आदि हैं, वहीं प्रमुख धार्मिक स्थलों के रूप में यहाँ चिल्कुर बालाजी मंदिर और मक्का मस्ज़िद और इस्कॉन टैम्पल भी शामिल हैं।हैं। ‘सुधा कार म्यूज़ियम’, माउंट ऑपेरा थीम पार्क, उस्मान सागर लेक, निज़ाम का म्यूज़ियम, नागार्जुन सागर डैम, बिरला प्लेनेटोरियम और अनेक आधुनिक मॉल आदि अनेक आकर्षण के केंद्र हैदरबाद-सिकंदराबाद ‘ट्विन-सिटी’ में  अथवा इनके आसपास मौजूद हैं, जिनको देखने में आपके कई  दिन लग सकते हैं। मुझे लगता है कि मैं फिर कभी यहाँ आया तो कुछ अन्य स्थानों के बारे में विस्तार से चर्चा कर सकता हूँ।

 

 

आज के लिए इतना ही,

नमस्कार।

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भारत का सिंहद्वार!

मुंबई में दूसरा दिन निकल गया, कहीं ज्यादा निकलने की हिम्मत नहीं हुई। फिर सोचा कि शुरुआत अगर की जाए कुछ देखने की, शेयर करने की, तो प्रवेश स्थल से ही की जाए न। एक ऐसा प्रवेश द्वार जो सौ वर्ष से अधिक समय से, जलमार्ग द्वारा मुंबई, जो कि पहले बंबई थी वहाँ, बल्कि भारतवर्ष में आने वाले लोगों के लिए प्रवेश-स्थल था।

 

 

वैसे तो मुगलों द्वारा अपने शासन के दौरान अनेक नगरों जैसे दिल्ली, जयपुर आदि-आदि में बहुत से द्वार अथवा गेट बनावाए गए हैं। अंग्रेजों द्वारा बनवाए गए दो गेट प्रमुख हैं, मुंबई में ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ और दिल्ली में ‘इंडिया गेट’। जबकि ‘इंडिया गेट’ युद्ध में हुए शहीदों की स्मृति को अमर करने के लिए बनाया गया था और वहाँ अमर जवान ज्योति भी स्वतंत्र भारत में प्रज्ज्वलित की गई, मुंबई का ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ वास्तव में विदेशों से समुद्र मार्ग द्वारा आने वालों के लिए प्रवेश स्थल रहा है।

 

 

एक फिल्म याद आती है जिसमें नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ पर फोटोग्राफी करते हैं और इस प्रक्रिया में उनको हीरोइन मिल जाती है, शायद इस उम्मीद में अभी भी कुछ फोटोग्राफर वहाँ अपनी किस्मत आज़माते हों, परंतु अब स्मार्टफोन के स्मार्ट कैमरों के कारण सभी लोग आत्म निर्भर हो गए हैं और इन बेचारे फोटोग्राफरों के लिए अब बहुत कुछ नहीं बचा है। वैसे तो मोदी जी ने भी ‘सैल्फी’ को लोकप्रिय बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है।

 

 

समुद्रतट पर बना यह विशाल गेट स्थापत्य कला का अनूठा नमूना है, 1924 में बनकर तैयार हुए इस गेट के बारे में कहा जाता है कि यह गेट ब्रिटिश शासक के स्वागत में तैयार किया गया था, परंतु आज यह भारतीय शान का प्रतीक है।

गेटवे ऑफ इंडिया के सामने ही भारतीय उद्योगपति टाटा द्वारा तैयार कराया गया और संचालित ‘ताजमहल होटल’ है जिसका पुराना और नया भवन अपने आप में प्राचीन और आधुनिक स्थापत्य कला के उदाहरण हैं। मुझे याद है कि जब मैं मुंबई में रहता था, तब एक बार मुंबई में टेस्ट मैच चल रहा था और इस होटल में ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम ठहरी हुई थी। बहुत सारे लोगों की भीड़ उन खिलाड़ियों को निकट से देखने के लिए इकट्ठा हुई थी, जिनमें मेरा बेटा भी शामिल था।

 

 

ताजमहल होटल आज अपने आप में भारतीयों के साहस का प्रतीक भी बन गया है 26/11 के हमले के बाद, और उद्योगपति रतन टाटा ने इस हमले में घायल और शहीद हुए अपने कर्मियों के परिवारों का जिस प्रकार खयाल रखा वह वास्तव में एक श्रेष्ठ उद्योगपति का उदाहरण है।

हाँ गेटवे ऑफ इंडिया के पास ही दूसरी तरफ, लगभग 12 कि.मी. दूर समुद्र में ‘एलीफेंटा केव्स’ हैं जिनमें प्राचीन भारतीय मूर्तिकला को बहुत सुंदर रूप से प्रस्तुत किया गया है, पहाड़ियों को काटकर बनाई गई ये गुफाएं भी सैलानियों को काफी आकर्षित करती हैं।

 

इसके अलावा एक स्थान और जो इनके पास ही है और भारतवर्ष में रेल यातायात से जुड़ा एक प्रमुख स्टेशन है और मुंबई की तो जीवन-रेखा कही जाती है- मुंबई लोकल, दोनो का यह प्रमुख केंद्र है और साथ ही इसका भवन भी प्राचीन स्थापत्य कला का नमूना है- मुंबई- सीएसटी स्टेशन, आप भले ही टैक्सी से भ्रमण करें, लेकिन यहाँ भी अवश्य जाएं, वैसे लोकल और अब मैट्रो भी, इनके द्वारा आपकी यात्रा अधिक गति से हो पाएगी, बशर्ते आप रूट जानते हों और लोकल आदि से अपना पर्स और कीमती सामान लेकर सुरक्षित बाहर निकलना सुनिश्चित कर सकते हों।

 

 

आज के लिए इतना ही, आगे अगर और स्थान देखने का मौका मिलेगा तो उनके बारे में भी अपने विचार प्रस्तुत करूंगा।

नमस्कार।

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मीरामार बीच गोवा की एक शाम!

अन्य स्थानों पर भ्रमण का विवरण तो लिखते ही रहते हैं, आज गोवा में मीरामार बीच पर सूर्यास्त और शाम के समय के कुछ चित्र शेयर कर रहा हूँ। आशा है आपको पसंद आएंगे-

 

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।


वापस अपने हिंदुस्तान!

डेढ़ माह के प्रवास के बाद लंदन से वापस चले और बंगलौर में आकर टपक गए। एयर इंडिया से ही हमने दोनो तरफ की यात्रा की। एक बात कहने का मन हो रहा ‘एयर इंडिया’ के बारे में, अपनी सरकारी एयरलाइन है, इसमें जो परिचारिकाएं हमारी सेवा के लिए उपस्थित होती हैं, उनकी उम्र देखते हुए कई बार खयाल आता है कि इनसे सेवा कराई जाए अथवा इनकी सेवा की जाए!

 

 

खैर रात में साढ़े तीन बजे बंगलौर पहुंचने के बाद आप्रवास अर्थात इमिग्रेशन की प्रक्रिया में सामान्य से कुछ अधिक समय लगा लेकिन फिर उसके बाद मैंने ‘कस्टम’ वालों के विशेष किले से गुज़रने की प्रक्रिया को देखा, जहाँ सभी यात्रियों के हैंड-बैगेज को ‘एक्स-रे’ किया जा रहा था, जैसा कि बोर्डिंग के समय किया जाता है और इस काम में वे अपनी अक्षमता भी भरपूर दिखा रहे थे।

 

 

इससे पहले मैं जब विदेश से वापस आया हूँ, तब या तो दिल्ली आया हूँ अथवा गोवा (मुंबई होते हुए) में इमिग्रेशन संबंधी कार्रवाई हुई है। जहाँ तक ‘कस्टम’ संबंधी कार्रवाई की बात है, उसके लिए बेल्ट से अपना सामान लेने के बाद जब यात्री बाहर की तरफ जाते हैं, मैंने देखा है कि वहाँ कस्टम वाले कुछ या सभी लोगों का सामान एक्स-रे कर लेते थे, लेकिन उसके लिए कोई लंबी लाइन लगते मैंने अब तक नहीं देखी थी।

 

 

 

हाँ तो बंगलौर पर कस्टम की परेशान करने वाली प्रक्रिया से गुजरने के बाद जब मैं बाहर आया तब दूसरी तरफ खड़े उनके एक सरगना, मेरा उसको ‘अधिकारी’ कहने का मन नहीं हो रहा, वह बोला कि आपने अपनी जेब से मोबाइल स्कैन करने के लिए नहीं निकाला। मैंने झुंझला कर कहा कुछ नहीं है भाई, सब तो निकाल दिया। इस पर वो बोला- ‘गुस्सा क्यों दिखा रहे हो, इधर खड़े हो जाओ’, तब मुझे लगा कि मैंने इस इंसान की ‘न्यूसेंस वेल्यू’ का उचित सम्मान नहीं किया। कुछ नहीं होने पर भी यह मुझे 2-4 घंटे रोककर रख सकता है, कुछ वस्तुएं भी सामान से निकालकर रख सकता है! शुक्र है ऐसा कुछ नहीं हुआ।  बाद में बेल्ट से सामान लेकर निकलने के बाद भी कस्टम का क्षेत्र था, लेकिन वहाँ किसी ने सामान स्कैन कराने के लिए नहीं कहा।

 

 

मुझे एक घटना याद आ गई, वह भी लंदन और ‘कस्टम’ से जुड़ी हुई थी। मैं ऑनलाइन अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद का काम करता हूँ, नियमित नहीं लेकिन जब मिल जाए तब, क्योंकि मैं ‘रेट’ कम रखकर यह काम नहीं करना चाहता। अनुवाद के लिए एजेंसियां, ज्यादातर विदेशी, अपनी सामग्री की सॉफ्ट-कॉपी ऑनलाइन भेज देती हैं और मैं अनुवाद करके भी ऑनलाइन वापस भेज देता हूँ।

 

 

एक बार एक ब्रिटिश एजेंसी से रेट संबंधी सहमति बनी और उन्होंने कहा कि वे कूरियर द्वारा सामग्री भेज रहे हैं, जिसका अनुवाद करना है। शायद सामग्री का वजन एक-दो किलो रहा होगा। वैसे यह पहली बार था कि कोई एजेंसी अनुवाद के लिए सामग्री की ‘हार्ड कॉपी’ भेज रही थी। उन्होंने मुझे कूरियर के संबंध में ‘ट्रैकिंग नंबर’ भेजा। बाद में पता लगा कि वह ‘कूरियर’ नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर रुका हुआ था, क्योंकि किसी वीर ‘कस्टम अधिकारी’ ने उस पर, पाउंड्स में इतना कस्टम जुर्मानालगा दिया था, जितने में कोई व्यक्ति हवाई जहाज से लंदन जाकर, वह सामग्री लेते हुए वापस आ सकता है। खैर मैंने फिर उस काम की उम्मीद छोड़ दी और शायद उस एजेंसी ने भी।

 

 

बस ऐसे ही खयाल आया कि हमारे देश में कुछ ऐसी एजेंसियां हैं जिनमें जनता को परेशान करने वाले लोग हैं, भ्रष्टाचार जहाँ का शिष्टाचार है, और लोगों को परेशान करने में ही जिनको अपनी सफलता नज़र आती है। जिन गतिविधियों को रोकने के लिए ये बनी हैं, उनके सरगनाओं से अक्सर इनकी मिलीभगत  भी होती है।

खैर लंदन महानगर और वहाँ के अति सुंदर हीथ्रो एयरपोर्ट की स्मृतियों के साथ हम वापस अपने लोगों के बीच, अपने हिंदुस्तान में आ गए, कहते हैं ना ‘पुनः कॉमन इंडियन भव’।

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।

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लंदन फिर से छूटा जाय!

यह आलेख भी मैंने पिछले वर्ष लंदन छोड़ने से पहले लिखा था, अब इसको थोड़ा बहुत एडिट करके फिर से प्रस्तुत कर रहा हूँ।
डेढ़ महीने के प्रवास के बाद कल सुबह लंदन छोड़ देंगे। कल दोपहर की फ्लाइट यहाँ से है, सो सुबह ही घर छोड़ देंगे, हाँ उस समय जब भारत में दोपहर होती है। फिर कुछ दिन बंगलौर में रुककर, अगले सप्ताह गोवा पहुंचेंगे।

 

 

बहुत लंबे समय तक यमुना मैया के पास, दिल्ली में यमुना पार- शाहदरा में रहे, एक वर्ष समुद्र के आकर्षण वाली नगरी मुंबई में रहे, अब गोवा में रहते हैं, जो समुद्र और अनेक आकर्षक ‘बीच’ होने के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन लंदन का अनुभव एकदम अलग था, जहाँ घर से थोड़ा दूर ही समुद्र जैसी लगने वाली नदी ‘थेम्स’ बहती है, पिछले वर्ष जिस मकान में थे वहाँ तो घर को छूते हुए ही बहती थी, अब नए घर के बगल से नहर बहती है, जिसके पार ‘कैनरी व्हार्फ’ के अंडरग्राउंड और ओवरग्राउंड दोनो स्टेशन हैं, एक ‘जुबिली लाइन’ का और दूसरा ‘डीएलआर’ लाइन का।

 

 

दिन भर पहले रंग-बिरंगे आकर्षक शिप और बोट घर से ही देखने को मिलते थे, जो एक अलग ही अनुभव था। इस बार हर कुछ ही सेकंड बाद ‘डीएलआर’ लाइन की ट्रेन सामने से जाती हुई दिखाई देती हैं। दुनिया के दूसरे छोर पर आकर यहाँ के स्थानों और अलग रंग, सभ्यता और संस्कृति वाले लोगों के बीच समय बिताने, एक दूसरी ही दुनिया को देखने का अवसर मिला। कुछ लोगों की रुचि स्थानों में अधिक होती है, मेरी मनुष्यों में भी समान रूप से रुचि है, हालांकि यहाँ अधिक लोगों से बातचीत का अवसर तो नहीं मिला।

 

 

शाम को जब 6 से 7 बजे तक वॉक के लिए जाता हूँ, इस बार मेरा ‘वॉक’ का ठिकाना ‘कैनरी व्हार्फ रिवर फ्रंट’ है, नदी किनारे यह आकर्षक स्थान विकसित किया गया है, जहाँ क्रूज़ आदि से लोग आते-जाते हैं और हाँ बड़ी संख्या में लोग यहाँ वॉक, साइक्लिंग और कुदरत का आनंद लेने के लिए भी आते हैं, शाम के समय यहाँ सूर्यास्त का सुंदर दृश्य देखने को मिलता है, जैसा गोवा में ‘मीरामार बीच’ पर भी मैं देखता हूँ।

 

 

एक और गतिविधि जो यहाँ बहुत सामान्य है, वह है ‘बार’ की रौनक, मैं जब ‘कैनरी व्हार्फ’ स्टेशन के सामने से होकर गुज़रता हूँ, और जब ‘रिवर फ्रंट’ पहुंचता हूँ वहाँ भी, मदिरालय में पीने वालों की इतनी भीड़ होती है, कि वे विशाल ‘बार’ के भीतर नहीं समा पाते और काफी संख्या में उनको बाहर खड़े होकर ही पीनी पड़ती है, ऐसा लगता है कि जैसे शराब मुफ्त में बंट रही हो, मदिरालय के सामने से गुज़रने में थोड़ी दिक्कत होती है, लेकिन मैंने किसी को पीकर बहकते हुए तो नहीं देखा। भारत में तो बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि पीकर बहके नहीं, तो पैसा बेकार ही खर्च किया!

 

 

इससे पहले दुबई और यूएई के प्रांतों तथा तंजानिया में घूमने का अवसर मिला था। लंदन का तो यह दूसरा ट्रिप है, पिछले वर्ष एक माह के लिए आया था, इस बार डेढ़ माह का प्रवास था। निश्चित रूप से हर अनुभव अपने आप में नया होता है।

 

 

लंबे समय तक एनटीपीसी में सेवा की लेकिन उस सेवा के दौरान कभी विदेश भ्रमण का अवसर नहीं मिला। मुझे याद है कि एक बार एक कवि आए थे, मैं वहाँ कवि सम्मेलनों का आयोजन करता था। तो वे कवि, उनको दिखता भी कम था, ‘भोंपू’ नाम था उनका, उन्होंने एकदम अपनी आंखों से सटाकर मेरा हाथ देखा था और कहा था कि मैं तो पता नहीं जिंदा रहूंगा या नहीं, लेकिन आप दुनिया के कई देश घूमोगे!

 

 

मैं सेवा से रिटायर भी हो गया फिर सोचा कि अब कहाँ विदेश जाऊंगा, लेकिन बच्चों का प्रताप है कि कई देशों में घूमना हो गया। कुछ लोगों के लिए विदेश जाना सहज ही रूटीन का हिस्सा होता है लेकिन मेरे मामले में ऐसा नहीं था।

खैर, आज ज्यादा लंबी बात नहीं करूंगा और इसके बाद अपने देश में पहुंचने के बाद ही बात होगी।

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।

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लंदन की खुरचन!

यह आलेख भी मैंने पिछले वर्ष लंदन छोड़ने से पहले लिखा था, अब इसको थोड़ा बहुत एडिट करके फिर से प्रस्तुत कर रहा हूँ।

शीर्षक पढ़कर आप सोच सकते हैं कि मैं किस डिश, किस व्यंजन की बात कर रहा हूँ और क्या ऐसी कोई डिश भी लंदन की विशेषता है! दरअसल मुझे तो किसी भी डिश की जानकारी नहीं है इसलिए ऐसी बात की तो उम्मीद न कीजिए।

असल में जब किसी भी विषय में बातचीत का समापन करना हो,तो एक तरीका यह भी है कि जहाँ लगे कि यह बात बतानी रह गई है,कुछ यहाँ से,कुछ वहाँ से,वे बातें ही कर ली जाएं। जैसे कड़ाही में हलुआ आदि खत्म होने पर उसे खुरचकर निकालते हैं! इतना ज्ञान तो मुझे है खाने-पीने के पदार्थों का!

हाँ तो कुछ बातें,जो मुझे यहाँ अच्छी लगीं,उनका ज़िक्र कर लेते हैं,वैसे कमियां भी सभी जगह होती हैं,लेकिन उन पर मेरा ध्यान तो गया नहीं है,डेढ़ माह के इस संक्षिप्त प्रवास में। हाँ जो बातें मैं कहूंगा,वो जितना अनुभव मुझे यहाँ हुआ है,उसके आधार पर ही कहूंगा,हो सकता है कुछ इलाकों में स्थिति इससे अलग हो।

कुछ बातें हैं जिन पर अपने देश में तो सरकारों ने कभी ध्यान दिया नहीं है,और ऐसा करके शायद कुछ व्यवसायों को हमारे देश में बहुत बढ़ावा मिला है!

जैसे एक है पीने का शुद्ध पानी! क्या ये हमारी सरकारों,नगर निकायों आदि की ज़िम्मेदारी नहीं है कि नागरिकों को पीने का शुद्ध पानी उपलब्ध कराया जाए! अपने संक्षिप्त प्रवास में मुझे तो यहाँ कोई पानी शुद्ध करने के लिए आरओ सिस्टम,फिल्टर आदि इस्तेमाल करते नहीं दिखा। दुकानों में भी मैंने ये सामान बिकते नहीं देखा। होटल में रुकने पर भी यह बताया गया कि आपके कमरे, बाथ रूम में जो पानी आ रहा है,उसी को आप पीने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। सोचिए यदि हमारी सरकारें इस तरफ ध्यान देतीं तो नागरिकों का कितना भला होता,लेकिन तब यह फिल्टर,आरओ सिस्टम का उद्योग कैसे पनपता!

 

इसी प्रकार यहाँ मैंने किसी को जेनरेटर,इन्वर्टर आदि इस्तेमाल करते नहीं देखा। मैं गुड़गांव में 7-8 साल रहा हूँ, सोचिए वहाँ तो इन्वर्टर के बिना काम ही नहीं चलता,कितना पनपाया है इन उद्योगों को हमारी सरकारों के निकम्मेपन ने! इसके अलावा जिन हाउसिंग सोसायटियों में पॉवर बैक-अप दिया जाता है,वो कितना ज्यादा पैसा वसूलती हैं लोगों से और इसके लिए भी हमारी सरकारों का निकम्मापन ही ज़िम्मेदार हैं।

 

यहाँ लंदन की बसों में केवल ड्राइवर होता है और भुगतान बस,ट्रेन आदि सभी में कार्ड द्वारा किया जाता है। यहाँ मैंने पाया कि विकलांग व्यक्ति भी काफी संख्या में हैं। लेकिन वे गतिविधि के मामले में कहीं किसी से कम नहीं लगते। मैंने देखा कि यहाँ उनके पास सामान्य व्हील चेयर नहीं बल्कि मोटरचालित चेयर होती है। बस में जब कोई विकलांग व्यक्ति आता है तो ड्राइवर एक बटन दबाकर गेट से एक स्लोप वाला प्लेटफॉर्म निकाल देता है और वह व्यक्ति उससे बस में चढ़ जाता है। यहाँ सभी बसों में,ट्रेन में विकलांग व्यक्ति अपनी मोटरचालित कुर्सी के साथ चढ़ते हैं। (वैसे मुझे लगता है कि उनके लिए ‘दिव्यांग’ शब्द इस्तेमाल करना ही बेहतर है)।

हर जगह- बस,रेल,मार्केट में आपको दिव्यांगों की मोटरचालित कुर्सी और बच्चों की प्रैम अवश्य दिखाई देंगी। सक्रियता में यह दिव्यांग व्यक्ति कहीं किसी से कम नहीं लगते और इनके लिए सुविधाएं भी हर जगह हैं,जिससे ये किसी पर निर्भर नहीं रहते।

 

 

बच्चों के मामले में भी ये है कि यहाँ पर वे या तो प्रैम में होते हैं या अपने पैरों पर,वे गोदी में दिखाई नहीं देते,और उनकी प्रैम के लिए भी सभी स्थानों पर व्यवस्था है। आपकों बस,ट्रेन और मार्केट में कुछ मोटरचालित व्हील चेयर और कुछ प्रैम अवश्य मिल जाएंगी।

 

अंत में एक बात याद आ रही है,शायद निर्मल वर्मा जी ने लिखा था कि लंदन जाने के बाद मेरी सबसे पहली इच्छा ये थी कि जिन अंग्रेजों ने हमारे देश पर इतने लंबे समय तक राज किया है, उनमें से किसी से अपने जूतों पर पॉलिश कराऊं। तो यहाँ मैंने देखा कि यहाँ शॉपिंग मॉल आदि में पॉलिश करने के लिए एक ऊंचे प्लेटफॉर्म पर कुर्सी रखी रहती है जिस पर पॉलिश कराने वाला बैठता है,उसके सामने ही पॉलिश करने वाला,फर्श पर रखी कुर्सी पर बैठकर पॉलिश करता अथवा करती है। उसको पॉलिश करते देखकर ही आप जान पाएंगे कि वह पॉलिश करने वाला अथवा वाली है,अन्यथा नहीं। सफाई कर्मी भी एक कूड़ा उठाने के साधन से,खड़े-खड़े ही नीचे पड़ा कूड़ा उठकर अपने पास रखी थैली में बिना छुए डाल देता है। हर काम की गरिमा यहाँ पर है।

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।

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