
तेरी लटों में सो लेते थे बे-घर आशिक बे-घर लोग,
बूढ़े बरगद आज तुझे भी काट गिराया लोगों ने|
कैफ़ भोपाली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
तेरी लटों में सो लेते थे बे-घर आशिक बे-घर लोग,
बूढ़े बरगद आज तुझे भी काट गिराया लोगों ने|
कैफ़ भोपाली
पेड़ों जैसे लोग कटे,
गुज़रा आरा-आरा दिन|
सूर्यभानु गुप्त