
मैंने दो चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन |
शहर के तौर तरीक़े मुझे कम आते हैं ||
*****
ख़ूबसूरत सा कोई हादसा आँखों में लिये |
घर की दहलीज़ पे डरते हुए हम आते हैं ||
बशीर बद्र
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मैंने दो चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन |
शहर के तौर तरीक़े मुझे कम आते हैं ||
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ख़ूबसूरत सा कोई हादसा आँखों में लिये |
घर की दहलीज़ पे डरते हुए हम आते हैं ||
बशीर बद्र