
जो आधे में छूटी हम,
मिसरे उसी ग़ज़ल के हैं।
बिछे पाँव में क़िस्मत है,
टुकड़े तो मखमल के हैं।
बालस्वरूप राही
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जो आधे में छूटी हम,
मिसरे उसी ग़ज़ल के हैं।
बिछे पाँव में क़िस्मत है,
टुकड़े तो मखमल के हैं।
बालस्वरूप राही