
कैसी अजीब शर्त है दीदार के लिए,
आँखें जो बंद हों तो वो जल्वा दिखाई दे|
कृष्ण बिहारी नूर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कैसी अजीब शर्त है दीदार के लिए,
आँखें जो बंद हों तो वो जल्वा दिखाई दे|
कृष्ण बिहारी नूर
उस हुस्न के सच्चे मोती को हम देख सकें पर छू न सकें।
जिसे देख सकें पर छू न सकें वो दौलत क्या वो ख़ज़ाना क्या॥
इब्ने इंशा