
याद के बे-निशाँ जज़ीरों से,
तेरी आवाज़ आ रही है अभी|
नासिर काज़मी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
याद के बे-निशाँ जज़ीरों से,
तेरी आवाज़ आ रही है अभी|
नासिर काज़मी
ख़मोशी साज़ होती जा रही है,
नज़र आवाज़ होती जा रही है|
आनंद नारायण ‘मुल्ला’