
हालात के क़दमों पे क़लंदर नहीं गिरता,
टूटे भी जो तारा तो ज़मीं पर नहीं गिरता|
क़तील शिफ़ाई
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हालात के क़दमों पे क़लंदर नहीं गिरता,
टूटे भी जो तारा तो ज़मीं पर नहीं गिरता|
क़तील शिफ़ाई
आज मैं राष्ट्रप्रेम और ओज के कवि, स्वर्गीय रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की एक प्रसिद्ध कविता शेयर कर रहा हूँ, जिसमें उन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों को नमन किया है| दिनकर जी ने जहां ‘मेरे नगपति, मेरे विशाल’ जैसी पंक्तियाँ लिखीं वहीं उन्होंने ‘उर्वशी’ जैसी महान रचना भी लिखी, जो बिल्कुल अलग तरह की थी| पौराणिक चरित्रों को लेकर उन्होंने अद्वितीय काव्य सुमन मां भारती को अर्पित किए हैं, वहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी को लेकर भी उनकी अनेक बहुमूल्य रचनाएं हैं| एक बार संसद में हिन्दी विरोधियों को ललकारते हुए उन्होंने अपनी एक प्रसिद्ध रचना का पाठ किया था- ‘तान तान फण व्याल कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ’|
लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की यह प्रसिद्ध कविता –
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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