
हमारी आँख के आँसू की अपनी दुनिया है,
किसी फ़क़ीर को शाहों का डर नहीं होता|
वसीम बरेलवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हमारी आँख के आँसू की अपनी दुनिया है,
किसी फ़क़ीर को शाहों का डर नहीं होता|
वसीम बरेलवी
मुझे तलाश करोगे तो फिर न पाओगे,
मैं इक सदा हूँ सदाओं का घर नहीं होता|
वसीम बरेलवी
मैं उसकी आँख का आँसू न बन सका वर्ना,
मुझे भी ख़ाक में मिलने का डर नहीं होता|
वसीम बरेलवी
कभी लहू से भी तारीख़ लिखनी पड़ती है,
हर एक मारका बातों से सर नहीं होता|
वसीम बरेलवी
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता,
हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता|
वसीम बरेलवी
इस दौर ए मुंसिफ़ी में ज़रूरी नहीं ‘वसीम,
जिस शख्स की ख़ता हो, उसी को सज़ा मिले|
‘
वसीम बरेलवी
रिश्तों को बार बार समझने की आरज़ू,
कहती है फिर मिले तो कोई बेवफ़ा मिले।
वसीम बरेलवी
दुनिया को दूसरों की नज़र से न देखिये,
चेहरे न पढ़ सके तो किताबों में क्या मिले|
वसीम बरेलवी
इस आरज़ू ने और तमाशा बना दिया,
जो भी मिले हमारी तरफ देखता मिले|
वसीम बरेलवी
हर शख्स दौड़ता है यहां भीड़ की तरफ,
फिर यह भी चाहता है उसे रास्ता मिले|
वसीम बरेलवी