
सुलगती रेत में पानी कहाँ था,
कोई बादल छुपा था तिश्नगी में|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
सुलगती रेत में पानी कहाँ था,
कोई बादल छुपा था तिश्नगी में|
निदा फ़ाज़ली
मिरी बे-ज़बान आँखों से गिरे हैं चंद क़तरे,
वो समझ सकें तो आँसू न समझ सकें तो पानी|
नज़ीर बनारसी
ज़ब्त कीजे तो दिल है अँगारा,
और अगर रोइए तो पानी है|
फ़िराक़ गोरखपुरी
ज़िंदगी दर्द की कहानी है,
चश्म-ए-अंजुम में भी तो पानी है|
फ़िराक़ गोरखपुरी
पानियों से तो प्यास बुझती नहीं,
आइए ज़हर पी के देखते हैं|
राहत इन्दौरी
दिल को शोलों से करती है सेराब,
ज़िन्दगी आग भी है पानी भी।
फ़िराक़ गोरखपुरी
आज मैं संतोषानंद जी का एक गीत शेयर करना चाहता हूँ, संतोषानंद जी को मैं लाल किले में राष्ट्रीय दिवसों पर आयोजित कवि-सम्मेलनों के ज़माने से सुनता रहा हूँ, जहां उन दिनों श्री गोपाल प्रसाद व्यास जी आयोजन का संचालन करते थे और जब वे बेटा संतोषानंद कहते हुए उनको आवाज़ लगाते थे तब वे गुरुदेव पुकारते हुए व्यास जी के चरणों में गिर जाते थे|
संतोषानंद जी ने फिल्मों में काफी नाम और धन कमाया लेकिन उसके बाद फिर उन पर मुसीबतें आ गईं| मैं उनके सुखी जीवन की कामना करता हूँ|
लीजिए आज प्रस्तुत है संतोषानंद जी का यह फिल्मी गीत, जिसे फिल्म- ‘शोर’ के लिए लता जी और मुकेश जी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी के संगीत निर्देशन में बहुत खूबसूरत तरीके से गाया था-
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
जिसमें मिला दो लगे उस जैसा
इस दुनिया में जीनेवाले ऐसे भी हैं जीते
रूखीसूखी खाते हैं और ठंडा पानी पीते।
तेरे एक ही घूँट में मिलता जन्नत का आराम
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
भूखे की भूख और प्यास जैसा।
गंगा से जब मिले तो बनता गंगाजल तू पावन
बादल से तू मिले तो रिमझिम बरसे सावन
सावन आया सावन आया रिमझिम बरसे पानी
आग ओढ़कर आग पहनकर, पिघली जाए जवानी
कहीं पे देखो छत टपकती, जीना हुआ हराम
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
दुनिया बनाने वाले रब जैसा।
वैसे तो हर रंग में तेरा जलवा रंग जमाए
जब तू फिरे उम्मीदों पर तेरा रंग समझ ना आए
कली खिले तो झट आ जाए पतझड़ का पैगाम
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
सौ साल जीने की उम्मीदों जैसा।
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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नदी की कहानी कभी फिर सुनाना,
मैं प्यासा हूँ दो घूँट पानी पिलाना।
कन्हैयालाल नंदन
आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमें,
मुझको ये वहम नहीं है कि खु़दा है मुझमें|
राजेश रेड्डी
गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला,
चिड़ियों को दाने, बच्चों को गुड़धानी दे मौला|
निदा फ़ाज़ली