
होता है यूँ भी, रास्ता खुलता नहीं कहीं,
जंगल-सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
होता है यूँ भी, रास्ता खुलता नहीं कहीं,
जंगल-सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ|
निदा फ़ाज़ली