
बहाना ढूँढते रहते हैं कोई रोने का,
हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का|
जावेद अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
बहाना ढूँढते रहते हैं कोई रोने का,
हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का|
जावेद अख़्तर
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी,
कोई आँसू मेरे दामन पे बिखर जाने दे।
नज़ीर बाक़री
आज एक बार फिर से मैं किसी ज़माने में अपने मधुर गीतों के द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले, अपनी रचना ‘मधुशाला’ के कारण विशेष ख्याति प्राप्त हिन्दी कवि और अमिताभ बच्चन जी के पूज्य पिताश्री स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन जी का एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ| सरल भाषा में गहन बात कहना बच्चन जी की विशेषता थी|
लीजिए आज प्रस्तुत हैं स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन जी का यह गीत –
मैं कल रात नहीं रोया था
दुख सब जीवन के विस्मृत कर,
तेरे वक्षस्थल पर सिर धर,
तेरी गोदी में चिड़िया के बच्चे-सा छिपकर सोया था!
मैं कल रात नहीं रोया था!
प्यार-भरे उपवन में घूमा,
फल खाए, फूलों को चूमा,
कल दुर्दिन का भार न अपने पंखो पर मैंने ढोया था!
मैं कल रात नहीं रोया था!
आँसू के दाने बरसाकर किन आँखो ने तेरे उर पर
ऐसे सपनों के मधुवन का मधुमय बीज, बता, बोया था?
मैं कल रात नहीं रोया था!
आज के लिए इतना ही, नमस्कार|
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घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए|
निदा फ़ाज़ली
आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्रे-फ़िराक़,
वो तेरा रो-रो के मुझको भी रुलाना याद है|
हसरत मोहानी
आज उसने दर्द भी अपने अलहदा कर दिए,
आज मैं रोया तो मेरे साथ वो रोया न था|
अदीम हाशमी