
तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से,
होता है शगुफ़्ता मगर इतना नहीं होता|
अकबर इलाहाबादी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से,
होता है शगुफ़्ता मगर इतना नहीं होता|
अकबर इलाहाबादी