
बे-हिस दीवारों का जंगल काफ़ी है वहशत के लिए,
अब क्यूँ हम सहरा को जाएँ अब वैसे हालात कहाँ|
राही मासूम रज़ा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
बे-हिस दीवारों का जंगल काफ़ी है वहशत के लिए,
अब क्यूँ हम सहरा को जाएँ अब वैसे हालात कहाँ|
राही मासूम रज़ा