
खोल के खिड़की चाँद हँसा फिर चाँद ने दोनों हाथों से,
रंग उड़ाए फूल खिलाए चिड़ियों को आज़ाद किया|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
खोल के खिड़की चाँद हँसा फिर चाँद ने दोनों हाथों से,
रंग उड़ाए फूल खिलाए चिड़ियों को आज़ाद किया|
निदा फ़ाज़ली
लट्टू की तरह घूम के चौराहा सो गया,
चुपचाप देखती रही खिड़की खुली हुई|
सूर्यभानु गुप्त
कभी तो हो मेरे कमरे में ऐसा मंज़र भी,
बहार देख के खिड़की से मुस्कराई हो|
परवीन शाकिर
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं,
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई|
परवीन शाकिर
खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की,
खिडकी खुली है गालिबन उनके मकान की|
गोपालदास ‘नीरज’
अभी बे-साया है दीवार कहीं लोच न ख़म,
कोई खिड़की कहीं निकले कहीं मेहराब लगे|
निदा फ़ाज़ली
ये धुन्धलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख ।
दुष्यंत कुमार
रात भर पिछली ही आहट कान में आती रही,
झाँककर देखा गली में कोई भी आया न था|
अदीम हाशमी