
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शम्मा बुझ गई,
गिलास ग़ुम शराब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी|
सुदर्शन फ़ाकिर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शम्मा बुझ गई,
गिलास ग़ुम शराब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी|
सुदर्शन फ़ाकिर
तिरे हाथ से मेरे होंट तक वही इंतिज़ार की प्यास है,
मिरे नाम की जो शराब थी कहीं रास्ते में छलक गई|
बशीर बद्र
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए,
इसके बा’द आए जो अज़ाब आए|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ख़ाली है मिरा साग़र तो रहे साक़ी को इशारा कौन करे,
ख़ुद्दारी-ए-साइल भी तो है कुछ हर बार तक़ाज़ा कौन करे|
आनंद नारायण मुल्ला
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए,
इसके बा’द आए जो अज़ाब आए|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
वो लब कि जैसे साग़र-ए-सहबा दिखाई दे,
जुम्बिश जो हो तो जाम छलकता दिखाई दे|
कृष्ण बिहारी नूर
शराब दिल की तलब थी शरा के पहरे में,
हम इतनी तंगी में उसको शराब क्या देते|
मुनीर नियाज़ी
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए,
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए|
राहत इंदौरी
तुम्हारी बे-रुख़ी ने लाज रख ली बादा-ख़ाने की,
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते|
क़तील शिफ़ाई
साक़ी से जो जाम ले न बढ़कर,
वो तिश्नगी तिश्नगी नहीं है|
अली सरदार जाफ़री