
वीराँ है मयकदा ख़ुमो-सागर उदास हैं,
तुम क्या गये कि रूठ गए दिन बहार के|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
वीराँ है मयकदा ख़ुमो-सागर उदास हैं,
तुम क्या गये कि रूठ गए दिन बहार के|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा,
बिखरे-बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं|
राहत इन्दौरी
मय-ख़्वारों की हर महफ़िल में,
खाली घूंटें हैं हम लोग।
शेरजंग गर्ग