
हैं रवाँ उस राह पर जिसकी कोई मंज़िल न हो,
जुस्तुजू करते हैं उसकी जो हमें हासिल न हो|
मुनीर नियाज़ी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हैं रवाँ उस राह पर जिसकी कोई मंज़िल न हो,
जुस्तुजू करते हैं उसकी जो हमें हासिल न हो|
मुनीर नियाज़ी