
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा,
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा|
परवीन शाकिर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा,
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा|
परवीन शाकिर
वो ज़ख़्म भर गया अर्सा हुआ मगर अब तक,
ज़रा सा दर्द ज़रा सा निशान बाक़ी है|
जावेद अख़्तर
ज़ख़्म गर दब गया, लहू न थमा,
काम गर रुक गया रवां न हुआ|
मिर्ज़ा ग़ालिब
हमारा ज़ख्म पुराना बहुत है,
चारागर भी पुराना चाहिए था|
राहत इन्दौरी
इन्हीं ख़ुशगुमानियों में कहीं जां से भी न जाओ,
वो जो चारागर नहीं है उसे ज़ख़्म क्यूं दिखाओ|
अहमद फ़राज़
तीर आँखों के जिगर के पार कर दो यार तुम,
जान मांगो या तो जां को निसार कर दो यार तुम|
इस दिल में अभी और भी ज़ख़्मों की जगह है,
अबरू की कटारी को दो, आब और जियादा|
इश्क़ में हम तुम्हें क्या बताएं, किस क़दर चोट खाए हुए हैं,
मौत ने हमको बख्शा है लेकिन, ज़िंदगी के सताए हुए हैं|
आज दिल की चोटों, दिल टूटने आदि को लेकर कुछ शेर, गीत पंक्तियाँ शेयर करूंगा, शुरुआत जोश मलीहाबादी जी के एक शेर से-
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया,
जब चली सर्द हवा, मैंने तुझे याद किया|
ये मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे।
क़तील शिफाई