
जब नाखूने-वहशत चलते थे, रोके से किसी के रुक न सके,
अब चाके-दिले-इन्सानियत को सीते हैं तो सीना मुश्किल है|
अर्श मलसियानी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जब नाखूने-वहशत चलते थे, रोके से किसी के रुक न सके,
अब चाके-दिले-इन्सानियत को सीते हैं तो सीना मुश्किल है|
अर्श मलसियानी
मेरा माज़ी फिर कुरेदा आपने।
कर दिया हर ज़ख़्म ताज़ा आपने।
नक़्श लायलपुरी
मैं तो समझा था भर चुके सब ज़ख़्म,
दाग़ शायद कोई कोई है अभी|
अहमद फ़राज़
चारागर रोते हैं ताज़ा ज़ख्म को,
दिल की बीमारी पुरानी और है|
अहमद फ़राज़
आकाश के माथे पर तारों का चरागाँ है,
पहलू में मगर मेरे जख्मों का गुलिस्तां,
आंखों से लहू टपका दामन में बहार आई|
अली सरदार जाफ़री
तमाम जिस्म ही घायल था, घाव ऐसा था,
कोई न जान सका, रख-रखाव ऐसा था|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
मिलते रहे दुनिया से जो ज़ख्म मेरे दिल को,
उनको भी समझकर मैं सौग़ात, बरतता हूँ ।
राजेश रेड्डी
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको,
सोचता हूँ कि कहू तुझसे, मगर जाने दे।
नज़ीर बाक़री
ऐ नये दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना,
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे|
नज़ीर बाक़री
हर एक नक़्श तमन्ना का हो गया धुंधला,
हर एक ज़ख़्म मेरे दिल का भर गया यारो|
शहरयार