-
तुम गए चित्तचोर !
आज एक बार फिर मैं हिन्दी काव्य जगत में गीतों के राजकुमार कहे जाने वाले स्वर्गीय गोपालदास नीरज जी का एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ| नीरज जी की बहुत सी कविताएं मैंने पहले भी शेयर की हैं और उनके बारे में बहुत सी बातें भी लिखी हैं| लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय गोपालदास नीरज…
-
मगर पासबाँ तो है!
इक चील एक मुम्टी पे बैठी है धूप में, गलियाँ उजड़ गई हैं मगर पासबाँ तो है| मुनीर नियाज़ी
-
कहीं गुल्सिताँ तो है!
यूँ तो है रंग ज़र्द मगर होंट लाल हैं, सहरा की वुसअ’तों में कहीं गुल्सिताँ तो है| मुनीर नियाज़ी
-
कोई दास्ताँ तो है!
देती नहीं अमाँ जो ज़मीं आसमाँ तो है, कहने को अपने दिल से कोई दास्ताँ तो है| मुनीर नियाज़ी
-
तू ख़ुदा के सामने!
याद भी हैं ऐ ‘मुनीर’ उस शाम की तन्हाइयाँ, एक मैदाँ इक दरख़्त और तू ख़ुदा के सामने| मुनीर नियाज़ी
-
जैसे पत्थर हो गया!
मैं तो उसको देखते ही जैसे पत्थर हो गया, बात तक मुँह से न निकली बेवफ़ा के सामने| मुनीर नियाज़ी
-
रंग-ए-हिना के सामने!
वो रंगीला हाथ मेरे दिल पे और उसकी महक, शम-ए-दिल बुझ सी गई रंग-ए-हिना के सामने| मुनीर नियाज़ी
-
उदित संध्या का सितारा!
आज एक बार फिर मैं हिन्दी में गीत कवियों के सिरमौर रहे स्वर्गीय हरिवंशराय बच्चन जी का एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ| बच्चन जी की बहुत सी कविताएं मैंने पहले भी शेयर की हैं और उनके बारे में बहुत सी बातें भी लिखी हैं| लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय हरिवंशराय बच्चन जी की यह…
-
मेरी सदा के सामने!
रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी, गूँज उट्ठे बाम-ओ-दर मेरी सदा के सामने| मुनीर नियाज़ी
-
उस हवा के सामने!
तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई, देर तक बैठा रहा मैं उस हवा के सामने| मुनीर नियाज़ी