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कोई त्यौहार होगा!
ये सारे शहर में दहशत सी क्यूँ है, यक़ीनन कल कोई त्यौहार होगा| राजेश रेड्डी
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रेत का अम्बार होगा!
ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा, वहाँ भी रेत का अम्बार होगा| राजेश रेड्डी
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होगा हल शायद!
चाँद डूबे तो चाँद ही निकले, आपके पास होगा हल शायद| गुलज़ार
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कोई पल शायद!
राख को भी कुरेद कर देखो, अभी जलता हो कोई पल शायद| गुलज़ार
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प्रेम प्रताप!
आज मैं हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष स्वर्गीय रामचन्द्र शुक्ल जी की एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ| नीरज जी की कविता मैं आज पहली बार शेयर कर रहा हूँ| लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय रामचन्द्र शुक्ल जी की यह कविता – जग के सबही काज प्रेम ने सहज बनाये,जीवन सुखमय किया शांति के स्रोत…
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कहीं कँवल शायद!
आ रही है जो चाप क़दमों की, खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद| गुलज़ार
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नहीं अमल शायद!
जानते हैं सवाब-ए-रहम-ओ-करम, उनसे होता नहीं अमल शायद| गुलज़ार
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नहीं है हल शायद!
दिल अगर है तो दर्द भी होगा, इसका कोई नहीं है हल शायद| गुलज़ार
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मिरी ग़ज़ल शायद!
लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायद, वो अकेले हैं आज-कल शायद| गुलज़ार
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अटका है पल शायद!
कोई अटका हुआ है पल शायद, वक़्त में पड़ गया है बल शायद| गुलज़ार