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130. बचपन
मेरी कुछ पुरानी कविताओं को शेयर करने के क्रम में, प्रस्तुत है आज की कविता- बचपन बचपन के बारे में, आपके मन में भी कुछ सपनीले खयालात होंगे, है भी ठीक, अपने आदर्श रूप में- बचपन एक सुनहरा सपना है, जो बीत जाने के बाद, बार-बार याद आता है। कोशिश रहती है हमारी, कि हमारे…
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129. मन के सुर राग में बंधें!
पुरानी कविताएं, जिनको मैंने उस समय फाइनल नहीं माना यानी ‘पास्ट इंपर्फेक्ट’ कविताओं में से, एक कविता आज प्रस्तुत है- मुझमें तुम गीत बन रहो मुझमें तुम गीत बन रहो, मन के सुर राग में बंधें। वासंती सारे सपने पर यथार्थ तेज धूप है, मन की ऊंची उड़ान है नियति किंतु अति कुरूप है, साथ-साथ…
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128. पेड़!
किसी ज़माने में कविताएं लिखने का बहुत चाव था। उस समय जो कविताएं किसी हद तक ‘परफेक्ट’ लगती थीं उनको मित्रों के बीच, गोष्ठियों में पढ़ देता था। बहुत सी पांडुलिपियां ऐसी होती थीं जिनको लेकर तसल्ली नहीं होती थी। ऐसी ही कुछ कागज़ पर सुरक्षित कविताएं, जिनको मैंने उस समय फाइनल नहीं माना और…
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127. बुझी हुई बाती सुलगाएं!
अब हम फिर से एक वर्ष के आखिरी मुहाने पर हैं, जैसे कोई किसी किताब के पन्ने पलटता है, लगभग 300-350 शब्द हो जाने के बाद, वैसे ही 365 दिन के बाद, हमारे जीवन की किताब में एक और पन्ना पलट जाता है, सफर में एक और स्टेशन पीछे छूट जाता है। अभी क्रिसमस का…
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126. कहती टूटी दीवट, सुन री उखड़ी देहरी!
आज एक खबर कहीं पढ़ी कि उत्तराखंड के किसी गांव में केवल बूढ़े लोग रह गए हैं, विशेष रूप से महिलाएं, जवान लोग रोज़गार के लिए शहरों को पलायन कर गए हैं। वैसे यह खबर नहीं, प्रक्रिया है, जो न जाने कब से चल रही है, गांव से शहरों की ओर तथा नगरों, महानगरों से…
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125. जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी!
आज बहादुर शाह ज़फर जी की एक गज़ल शेयर करने का मन हो रहा है। अभिव्यक्ति की दुनिया में हम सब एक-दूसरे से जुड़े हैं। कुछ लोग सामान्य जीवन में ही स्वयं को पर्याप्त रूप से अभिव्यक्त करते रहते हैं। कुछ उसके अलावा कला के विभिन्न उपादानों का सहारा लेकर- कविता, पेंटिंग, अभिनय, नाटक-फिल्म आदि…
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124. जीते जी तरना चाहे तो, पी ले गंगाजल के बदले!
आस्था के बारे में एक प्रसंग याद आ रहा है, जो कहीं सुना था। ये माना जाता है कि यदि आप सच्चे मन से किसी बात को मानते हैं, इस प्रसंग में यदि आप ईश्वर को पूरे मन से मानते हैं, तो वह आपको अवश्य मिल जाएगा। इस बीच कवि सोम ठाकुर जी के गीत…
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123. सुनते थे वो आएंगे, सुनते थे सहर होगी!
एक बार और दिल की बात कर लेते हैं, ऐसे ही कुछ बातें और आ रही हैं दिमाग में, आप इसे दिल पर मत लेना। कितनी तरह के दिल लिए घूमते हैं दुनिया में लोग, एक गीत में किसी ने बताया था- ‘कोई सोने के दिल वाला, कोई चांदी के दिल वाला, शीशे का है…
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122. फिर वही दिल लाया हूँ!
आज फिर दिल की बात होनी है, वैसे तो मैं समझता हूँ कि हर दिन इसी विषय पर बात की जा सकती है। एक गीत का मुखड़ा याद आ रहा है, जिस अंदाज़ में इसे रफी साहब ने गाया है, उससे यही लगता है कि यह शम्मी कपूर जी पर फिल्माया गया होगा, शायद फिल्म…
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121. दिल ही तो है !
अगर यह पूछा जाए कि रसोई में कौन सी वस्तु, कौन सा पदार्थ सबसे महत्वपूर्ण है तो पाक कला में निपुण कोई व्यक्ति, अब महिला कहने से बच रहा हूँ, क्योंकि बड़े-बड़े ‘शेफ’ आज की तारीख में पुरुष हैं, हाँ कोई भी ऐसा व्यक्ति बता देगा कि यह वस्तु सबसे ज्यादा उपयोग में आती है…