धागों बिंधे ग़ुलाब हमारे पास नहीं!

आज फिर से एक पुरानी ब्लॉग पोस्ट शेयर कर रहा हूँ| आज मन है कि अत्यंत सरल हृदय, प्रेम गीतों के बादशाह और स्वाभिमानी कवि स्वर्गीय किशन सरोज जी का स्मरण करूं|

प्रसिद्ध गीत कवि स्व. श्री किशन सरोज जी का स्मरण करते हुए उनका एक गीत आज शेयर कर रहा हूँ, वैसे तो उनका हर गीत बेमिसाल है| किशन सरोज जी प्रेम के और विरह के गीतों के सुकुमार बादशाह थे, अक्सर उन्होंने कवि सम्मेलनों में ईमानदार और सृजनशील कवियों की जो स्थिति होती है, हल्की-फुल्की कविताओं के माहौल में उनको क्या कुछ सहना पड़ता है, इस व्यथा को अभिव्यक्ति दी है, किशन सरोज जी का एक ऐसा ही गीत आज प्रस्तुत है-

नागफनी आँचल में बांध सको तो आना
धागों बिंधे ग़ुलाब हमारे पास नहीं।

हम तो ठहरे निपट अभागे
आधे सोये, आधे जागे,
थोड़े सुख के लिये उम्र भर
गाते फिरे भीड़ के आगे,
कहाँ-कहाँ हम कितनी बार हुए अपमानित,
इसका सही हिसाब, हमारे पास नहीं।


हमने व्यथा अनमनी बेची,
तन की ज्योति कंचनी बेची,
कुछ न मिला तो अंधियारों को,
मिट्टी मोल चांदनी बेची।
गीत रचे जो हमने उन्हें याद रखना तुम
रत्नों मढ़ी किताब, हमारे पास नहीं।


झिलमिल करतीं मधुशालाएँ,
दिन ढलते ही हमें रिझाएँ,
घड़ी-घड़ी हर घूँट-घूँट हम,
जी-जी जाएँ, मर-मर जाएँ,
पीकर जिसको चित्र तुम्हारा धुंधला जाए,
इतनी कड़ी शराब, हमारे पास नहीं।


आखर-आखर दीपक बाले,
खोले हमने मन के ताले,
तुम बिन हमें न भाए पल भर,
अभिनन्दन के शाल-दुशाले,
अबके बिछुड़े कहाँ मिलेंगे, ये मत पूछो,
कोई अभी जवाब, हमारे पास नहीं।

-किशन सरोज

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।
******

Leave a comment