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निर्बीज क्यों हो चले हम!
आज मैं एक बार फिर हिन्दी के श्रेष्ठ कवि और गीतकार श्री सोम ठाकुर जी का एक गीत शेयर कर रहा हूँ| सोम ठाकुर जी की बहुत सी रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं| लीजिए आज प्रस्तुत है श्री सोम ठाकुर जी का यह गीत– इस तरह निर्बीज -सेक्यों हो चले हम आजहरियल घास…
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कोई कहाँ है लेकिन!
औरों जैसे और न जाने कितने हैं, कोई कहाँ है लेकिन मेरे जैसा और| राजेश रेड्डी
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अजब मुसाफ़िर हूँ मैं!
अजब मुसाफ़िर हूँ मैं मेरा सफ़र अजीब, मेरी मंज़िल और है मेरा रस्ता और| राजेश रेड्डी
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किया ज़माने ने मुझ को!
सच कहने पर ख़ुश होना तो दूर रहा, किया ज़माने ने मुझ को शर्मिंदा और| राजेश रेड्डी
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लगता है और ज़रा सा और!
कभी तो लगता है जितना है काफ़ी है, और कभी लगता है और ज़रा सा और| राजेश रेड्डी
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पार है इक सन्नाटा और!
कोई अंत नहीं मन के सूने-पन का, सन्नाटे के पार है इक सन्नाटा और| राजेश रेड्डी
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मुझ में जाने क्या क्या और!
दरवाज़े के अंदर इक दरवाज़ा और, छुपा हुआ है मुझ में जाने क्या क्या और| राजेश रेड्डी
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बारिश में घर लौटा कोई!
आज एक बार फिर मैं हिन्दी के श्रेष्ठ व्यंग्य कवि और गीतकार स्वर्गीय कैलाश गौतम जी का एक नवगीत शेयर कर रहा हूँ| इनकी कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं| लीजिए आज प्रस्तुत हैं स्वर्गीय कैलाश गौतम जी का यह नवगीत – बारिश में घर लौटा कोई दर्पण देख रहा न्यूटन जैसे पृथ्वी का आकर्षण देख…
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न रख पाए ज़बाँ अपनी ख़मोश!
हम न रख पाए ज़बाँ अपनी ख़मोश, सर तो जाना ही था सर जाने दिया| राजेश रेड्डी
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तूफ़ाँ को गुज़र जाने दिया!
सर छुपाया अपना अपने आप में, और तूफ़ाँ को गुज़र जाने दिया| राजेश रेड्डी
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ख़ुद को मर जाने दिया!
कर ही क्या सकते थे हम सो उम्र भर, रफ़्ता-रफ़्ता ख़ुद को मर जाने दिया| राजेश रेड्डी