कुछ फूल मेरे हम-साये थे!

कैसे जाती मेरे बदन से बीते लम्हों की ख़ुश्बू,
ख़्वाबों की उस बस्ती में कुछ फूल मेरे हम-साये थे|

क़तील शिफ़ाई

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