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जैसे पत्थर हो गया!
मैं तो उसको देखते ही जैसे पत्थर हो गया, बात तक मुँह से न निकली बेवफ़ा के सामने| मुनीर नियाज़ी
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रंग-ए-हिना के सामने!
वो रंगीला हाथ मेरे दिल पे और उसकी महक, शम-ए-दिल बुझ सी गई रंग-ए-हिना के सामने| मुनीर नियाज़ी
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उदित संध्या का सितारा!
आज एक बार फिर मैं हिन्दी में गीत कवियों के सिरमौर रहे स्वर्गीय हरिवंशराय बच्चन जी का एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ| बच्चन जी की बहुत सी कविताएं मैंने पहले भी शेयर की हैं और उनके बारे में बहुत सी बातें भी लिखी हैं| लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय हरिवंशराय बच्चन जी की यह…
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मेरी सदा के सामने!
रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी, गूँज उट्ठे बाम-ओ-दर मेरी सदा के सामने| मुनीर नियाज़ी
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उस हवा के सामने!
तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई, देर तक बैठा रहा मैं उस हवा के सामने| मुनीर नियाज़ी
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इस अदा के सामने!
बैठ जाता है वो जब महफ़िल में आ के सामने, मैं ही बस होता हूँ उस की इस अदा के सामने| मुनीर नियाज़ी
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कितने और ठिकाने थे!
हमको सारी रात जगाया जलते बुझते तारों ने, हम क्यूँ उनके दर पर उतरे कितने और ठिकाने थे| इब्न-ए-इंशा
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इसके लाख बहाने थे!
ये लड़की तो इन गलियों में रोज़ ही घूमा करती थी, इससे उनको मिलना था तो इसके लाख बहाने थे| इब्न-ए-इंशा
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हाहाकार / हुंकार!
आज एक बार फिर मैं राष्ट्रकवि और ओज के प्रमुख कवि स्वर्गीय रामधारी सिंह दिनकर जी की एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ| दिनकर जी की बहुत सी कविताएं मैंने पहले भी शेयर की हैं| लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय रामधारी सिंह दिनकर जी की यह कविता – दिव की ज्वलित शिखा सी उड़ तुम…
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मीठे लोग रसीले लोग!
ज़िद्दी वहशी अल्लहड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग, होंट उन के ग़ज़लों के मिसरे आँखों में अफ़्साने थे| इब्न-ए-इंशा