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ऐ काश इस मक़ाम पे!
ऐ काश इस मक़ाम पे पहुँचा दे उस का प्यार, वो कामयाब होने पे मुझ को बधाई दे| कृष्ण बिहारी नूर
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निगाह को ऐसी रसाई दे!
देना है तो निगाह को ऐसी रसाई दे, मैं देखूँ आइना तो मुझे तू दिखाई दे| कृष्ण बिहारी नूर
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पात नए आ गए!
आज एक बार फिर मैं हिन्दी के प्रसिद्ध कवि स्वर्गीय केदारनाथ सिंह जी का एक नवगीत शेयर कर रहा हूँ| इनकी कविताओं को अज्ञेय जी द्वारा संपादित ‘तीसरा सप्तक’ में भी शामिल किया गया था| इनकी कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं| लीजिए आज प्रस्तुत हैं स्वर्गीय केदारनाथ सिंह जी का यह नवगीत…
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तीरगी ये मत कहो!
दिल में अपने दर्द की छिटकी हुई है चाँदनी, हर तरफ़ फैली हुई है तीरगी ये मत कहो| जाँ निसार अख़्तर
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कुछ कमी ये मत कहो!
जितने वादे कल थे उतने आज भी मौजूद हैं, उन के वादों में हुई है कुछ कमी ये मत कहो| जाँ निसार अख़्तर
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आज थक कर रह गया है!
पाँव इतने तेज़ हैं उठते नज़र आते नहीं, आज थक कर रह गया है आदमी ये मत कहो| जाँ निसार अख़्तर
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यारो अभी ये मत कहो!
कट सकी हैं आज तक सोने की ज़ंजीरें कहाँ, हम भी अब आज़ाद हैं यारो अभी ये मत कहो| जाँ निसार अख़्तर
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महँगाई!
आज एक बार फिर मैं हिन्दी के प्रसिद्ध हास्य कवि स्वर्गीय काका हाथरसी जी की एक कविता शेयर कर रहा हूँ| इनकी कुछ रचनाएं मैंने पहले भी शेयर की हैं| लीजिए आज प्रस्तुत हैं स्वर्गीय काका हाथरसी जी की यह कविता – जन-गण मन के देवता, अब तो आँखें खोलमहँगाई से हो गया, जीवन डाँवाडोलजीवन…
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दीवानगी ये मत कहो!
हम से दीवानों के बिन दुनिया सँवरती किस तरह, अक़्ल के आगे है क्या दीवानगी ये मत कहो| जाँ निसार अख़्तर