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नहीं है हल शायद!
दिल अगर है तो दर्द भी होगा, इसका कोई नहीं है हल शायद| गुलज़ार
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मिरी ग़ज़ल शायद!
लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायद, वो अकेले हैं आज-कल शायद| गुलज़ार
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अटका है पल शायद!
कोई अटका हुआ है पल शायद, वक़्त में पड़ गया है बल शायद| गुलज़ार
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दरमियाँ तो है!
मुझसे बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ ‘मुनीर’, पर्दा सा कोई मेरे तिरे दरमियाँ तो है| मुनीर नियाज़ी
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शायद वो मिल ही जाए!
आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए, वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगाँ तो है| मुनीर नियाज़ी
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तुम गए चित्तचोर !
आज एक बार फिर मैं हिन्दी काव्य जगत में गीतों के राजकुमार कहे जाने वाले स्वर्गीय गोपालदास नीरज जी का एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ| नीरज जी की बहुत सी कविताएं मैंने पहले भी शेयर की हैं और उनके बारे में बहुत सी बातें भी लिखी हैं| लीजिए आज प्रस्तुत है स्वर्गीय गोपालदास नीरज…
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मगर पासबाँ तो है!
इक चील एक मुम्टी पे बैठी है धूप में, गलियाँ उजड़ गई हैं मगर पासबाँ तो है| मुनीर नियाज़ी
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कहीं गुल्सिताँ तो है!
यूँ तो है रंग ज़र्द मगर होंट लाल हैं, सहरा की वुसअ’तों में कहीं गुल्सिताँ तो है| मुनीर नियाज़ी
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कोई दास्ताँ तो है!
देती नहीं अमाँ जो ज़मीं आसमाँ तो है, कहने को अपने दिल से कोई दास्ताँ तो है| मुनीर नियाज़ी
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तू ख़ुदा के सामने!
याद भी हैं ऐ ‘मुनीर’ उस शाम की तन्हाइयाँ, एक मैदाँ इक दरख़्त और तू ख़ुदा के सामने| मुनीर नियाज़ी